मानिकपुर तहसील में मंगलवार को उस समय अफरा-तफरी मच गई, जब बाढ़ से तबाह ग्रामीणों को राहत सामग्री देने के नाम पर केवल दस्तखत या अंगूठा लगवाकर वापस लौटा दिया गया। प्रशासन की इस लापरवाही और भेदभावपूर्ण रवैये से आहत ग्रामीणों ने तहसील परिसर में जोरदार विरोध दर्ज कराया और व्यवस्था की पोल खोल दी।
ग्रामीणों का कहना है कि हालिया बाढ़ ने उनके घरों का सारा राशन, अनाज और जरूरी सामान नष्ट कर दिया। बच्चों के लिए भोजन तक नहीं बचा, कई घरों में चूल्हा नहीं जला। लेकिन जब राहत सामग्री मिलने की उम्मीद लेकर वे तहसील पहुंचे, तो वहां उन्हें सिर्फ कागज़ों पर दस्तखत कराने के बाद बैरंग लौटा दिया गया।
ग्राम निवासी समीना ने कहा, “हमसे पहले ही प्रधान ने अंगूठा लगवा लिया था। अब जब राहत देने की बारी आई तो न प्रधान दिखे, न कोई सामग्री। लेखपाल ने भी साफ कह दिया कि अब कुछ नहीं मिलेगा।” समीना की पीड़ा सिर्फ उनकी नहीं, बल्कि सैकड़ों बाढ़ पीड़ितों की सामूहिक आवाज बन गई।
प्रदर्शन कर रहे ग्रामीणों ने बताया कि न तो प्रधान ने कोई जवाब दिया, न ही प्रशासन की ओर से कोई ज़िम्मेदार अधिकारी सामने आया। लोगों का आरोप है कि जिनका नुकसान सबसे ज़्यादा हुआ, उन्हें कुछ नहीं मिला, जबकि कई अपात्र लोगों को पहले ही राहत किट थमा दी गई।
गुस्साए ग्रामीणों ने तहसील परिसर में प्रदर्शन करते हुए नारेबाजी की और कहा कि प्रशासन केवल फोटो खिंचवाने और सोशल मीडिया पर वाहवाही लूटने में व्यस्त है। जमीनी स्तर पर कोई भी राहत सही तरीके से नहीं पहुंच रही है।
स्थानीय बुजुर्गों ने कहा कि अगर यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में पीड़ितों को भूख और बीमारी से जूझना पड़ेगा। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही राहत वितरण में पारदर्शिता और न्याय नहीं हुआ, तो वे बड़ा जन आंदोलन करेंगे।
मानिकपुर की यह घटना सिर्फ एक तहसील का मामला नहीं, बल्कि प्रशासनिक संवेदनहीनता का जीवंत उदाहरण है। जब सरकार की मदद की सबसे ज़्यादा जरूरत थी, तब पीड़ितों को कागजी खानापूरी और छलावा ही मिला।