शुक्रवार, जुलाई 11, 2025
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चित्रकूट में खुलेआम मांस व्यापार पर विश्व हिंदू परिषद उग्र, श्रद्धालु बोले: आस्था पर हमला

पुरानी बाज़ार में सबसे ज्यादा मांस की दुकानें, धार्मिक मार्ग पर फैली गंदगी और बदबू से भक्तों में नाराज़गी

आखिर क्यों नहीं शिफ्ट किया जा रहा मांस मंडी को अलग मंडी परिसर में

श्रावण मास शुरू होते ही जहां एक ओर शिवभक्तों की आस्था से चित्रकूट की गलियाँ गूंज रही हैं, वहीं दूसरी ओर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाते हुए मांस की दुकानें नगर के मुख्य मार्गों पर खुलेआम संचालित हो रही हैं। विशेष रूप से पुरानी बाज़ार क्षेत्र, जो करवी शहर का सबसे भीड़भाड़ वाला इलाका है और चित्रकूट धाम की ओर जाने वाले श्रद्धालुओं का प्रमुख रास्ता भी, वहां हर मोड़ पर मटन, चिकन और मछली की दुकानें खुले में मांस बेच रही हैं। इस पूरे मामले पर विश्व हिंदू परिषद के ज़िला मंत्री नीरज केशरवानी ने नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा है कि श्रावण में इस तरह खुले में मांस बिक्री श्रद्धालुओं की श्रद्धा पर सीधा हमला है और यदि नगर प्रशासन ने इन दुकानों को नहीं हटाया तो विश्व हिंदू परिषद उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होगी।
जब सरस भावना के संपादक ने नगर पालिका के अंधिशाषी अधिकारी से इस विषय में जानकारी मांगी, तो बताया गया कि नगर में मांस विक्रेताओं के लिए लाइसेंस प्रक्रिया निर्धारित है, लेकिन अधिकांश दुकानदार इसका पालन नहीं करते। वहीं जब खाद्य विभाग के खाद्य सुरक्षा अधिकारी से संपर्क किया गया तो उन्होंने यह स्पष्ट किया कि “यह सभी दुकानें नियम विरुद्ध हैं, और हमने जांच नगर पालिका को सौंप दी है।” इस जवाब से स्थिति और उलझती दिखती है। जब खाद्य विभाग इन दुकानों को नियमविरुद्ध मान चुका है, तो अब तक कोई ठोस जांच क्यों नहीं हुई? और अगर अवैधता साबित है, तो कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? क्या नगर पालिका और खाद्य विभाग केवल एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर अपनी भूमिका से बचना चाह रहे हैं?
गौरतलब है कि पुरानी बाजार चित्रकूट का धार्मिक और वाणिज्यिक दोनों दृष्टि से अति महत्वपूर्ण क्षेत्र है। यहां से कामदगिरि, रामघाट, जानकीकुंड जैसे प्रमुख धार्मिक स्थल तक पहुंचने का मार्ग गुजरता है, जिस पर दिनभर श्रद्धालु चलते रहते हैं। परंतु यही मार्ग मांस की बदबू, गंदगी और अव्यवस्था का केंद्र बनता जा रहा है। श्रद्धालु इससे आहत हैं, लेकिन स्थानीय जनप्रतिनिधियों की चुप्पी भी उतनी ही चौंकाने वाली है। ना विधायक, ना सांसद और ना ही नगर पालिका अध्यक्ष ने इस संवेदनशील मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया दी है।
जनता के बीच यह भी चर्चा है कि इस खुलेआम मांस व्यापार के पीछे किसी न किसी स्तर पर सहमति या संरक्षण मौजूद है, वरना बिना लाइसेंस और साफ-सफाई के नियमों का उल्लंघन करते हुए इतनी दुकानें यूं ही नहीं चल सकतीं। नगर पालिका खुद कहती है कि दुकानदार लाइसेंस नहीं बनवाते, और खाद्य विभाग मानता है कि ये दुकानें अवैध हैं , फिर भी किसी अधिकारी ने अब तक सीलिंग या नोटिस जैसी कोई भी कार्रवाई नहीं की।
विश्व हिंदू परिषद की चेतावनी और श्रावण मास की धार्मिक गरिमा को देखते हुए अब यह मामला केवल नगर की सफाई या स्वास्थ्य व्यवस्था तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह सीधा श्रद्धालुओं की भावनाओं, प्रशासन की जवाबदेही और नगर के धार्मिक स्वरूप से जुड़ चुका है। यदि जल्द ही सख़्त कार्रवाई नहीं की गई, तो यह विरोध बड़ा रूप ले सकता है।

C P Dwivedi
C P Dwivedihttps://sarasbhavna.com
लेखक परिचय : चन्द्र प्रकाश द्विवेदी, चित्रकूट निवासी एक सक्रिय पत्रकार, लेखक, शिक्षाविद् और सामाजिक विचारक हैं, जो पिछले दो दशकों से हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र ‘सरस भावना’ के संपादक के रूप में जनपक्षीय पत्रकारिता कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार संस्थानों से की और अपने लेखन तथा संपादन कौशल से बुंदेलखंड की पत्रकारिता को नई दिशा दी। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर (M.A.), कंप्यूटर साइंस में मास्टर डिग्री (M.Sc. CS), सामाजिक कार्य में स्नातकोत्तर (MSW), पत्रकारिता एवं जनसंचार में डिग्री, और क़ानूनी ज्ञान में स्नातक (L.L.B.) की शिक्षा प्राप्त की है। वे एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं — एक संवेदनशील पत्रकार, प्रतिबद्ध समाजसेवी, करियर काउंसलर, राजनीतिक विश्लेषक, अधिवक्ता और व्यंग्यकार। वे शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि परिवर्तन और ग्रामीण विकास जैसे जनहित से जुड़े विषयों पर निरंतर काम कर रहे हैं। वर्तमान में वे बुंदेली प्रेस क्लब के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और सरकार से मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकारों में शुमार हैं। लेखन नाम बड़का पंडित‘’ के नाम से वे राजनीतिक पाखंड, जातिवाद, दिखावटी विकास, मीडिया के पतन और सामाजिक विडंबनाओं पर तीखे, मगर प्रभावशाली व्यंग्य लिखते हैं, जो समाज को सोचने और बदलाव के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी न सिर्फ व्यंग्य का माध्यम है, बल्कि बुंदेलखंड की पीड़ा, चेतना और संघर्ष की आवाज़ भी हैऔर शिक्षा, स्वास्थ्य व ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में सक्रिय रूप से कार्यरत हैं।
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