सरस भावना। चित्रकूट- गोस्वामी तुलसीदास की जन्मस्थली राजापुर इस बार फिर 22 जुलाई से 31 जुलाई तक दस दिवसीय तुलसी जन्म महोत्सव की तैयारियों में जुट गया है। शनिवार को तुलसी जन्मकुटीर में एक महत्वपूर्ण बैठक संपन्न हुई, जिसमें महोत्सव को भव्य रूप से आयोजित करने पर व्यापक चर्चा की गई। तुलसी इंटर कॉलेज के पूर्व प्रवक्ता राम गणेश पांडेय ने जानकारी दी कि बीते वर्षों की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए इस बार भी संत समाज, स्थानीय नागरिक और आयोजन समिति के सदस्य एकजुट होकर पूरे आयोजन को जनसहभागिता के साथ संपन्न कराना चाहते हैं।बैठक में यह भी बताया गया कि वृंदावन वंशी वट पीठ के संत रामदास जी महाराज के शिष्य राजेंद्र पांडेय गांव-गांव घूमकर लोगों को आयोजन में जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। उनके संपर्क से कई ग्रामीण श्रद्धा और सहभागिता के साथ जुड़ चुके हैं। कार्यक्रम में तुलसी की वाणी, मानस पाठ, भजन संध्या के साथ-साथ सांस्कृतिक प्रस्तुतियों की रूपरेखा भी बनाई जा रही है।
इस दौरान पूर्व प्रधानाचार्य रामराज पांडेय, धीरेन्द्र मिश्रा, राधेश्याम सोनी, सुभाष अग्रवाल, रामप्रसाद गर्ग, अमित पांडेय, भरत जायसवाल समेत अनेक स्थानीय गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे। सभी ने आयोजन को भव्यता देने के लिए आर्थिक, सांस्कृतिक व सामाजिक सहयोग का आश्वासन दिया।
हालांकि, हर साल मंच सजता है, अतिथि आते हैं, भाषण होते हैंकृ लेकिन सवाल अब यह उठ रहा है कि क्या यह आयोजन वास्तव में तुलसी के विचारों और दर्शन का प्रतिनिधित्व करता है? गोस्वामी तुलसीदास ने मानस के माध्यम से समाज को जोड़ने का काम किया था, लेकिन आज के आयोजन मंचीय रस्म-अदायगी और फोटो प्रसारण तक सीमित होते जा रहे हैं।
तुलसीदास की वाणी में जो परहित और समरसता थी, वह अब आयोजनों के भाषणों में कम दिखती है। स्थानीय नागरिकों की अपेक्षा है कि इस बार केवल पारंपरिक पूजा-पाठ न हो, बल्कि मानस पर आधारित संगोष्ठियाँ, छात्र संवाद, तुलसी दर्शन पर विचार गोष्ठी और युवाओं के लिए तुलसी को जानने-समझने के कार्यक्रम हों।
राजापुर, जो तुलसी की जन्मस्थली होने का दावा करता है, वहां आज भी स्थायी मानस केंद्र, शोध संस्थान या मानस पर आधारित कोई अध्ययन केंद्र नहीं है। सवाल यह भी है कि महज सालाना आयोजन से क्या तुलसीदास की विचारधारा को जिंदा रखा जा सकता है?बहरहाल, आयोजन की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। नगर में श्रद्धा का माहौल बन चुका है। दुकानों, गलियों और मंदिरों में तुलसी की चौपाइयाँ गूंज रही हैं। लोग मानते हैं कि यह आयोजन महज धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक चेतना और सामाजिक समरसता की बुनियाद है। अब देखना यह है कि इस बार का आयोजन तुलसी के आदर्शों को कितना छू पाता है और मंच से कोई यह पूछता है या नहीं, केवल मालाएं नहीं, मानस की बात भी होगी?
राजापुर में राम के रचयिता का स्मरण, महोत्सव की भव्य तैयारी रामचरितमानस की धरती तैयार, तुलसी जन्म महोत्सव की गूंज
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