शुक्रवार, जुलाई 11, 2025
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पाठा की आवाज़: युवा पत्रकार ललित पांडे बने युवाओं के लिए प्रेरणा, डकैतों से दो-दो हाथ, समाज सेवा में मिसाल, और पत्रकारिता से बदलाव की मशाल

चित्रकूट के दुर्गम पाठा क्षेत्र से एक ऐसा नाम उभरा है, जिसने अपने साहस, संघर्ष और सेवा भावना से न सिर्फ डकैतों के खौफ को ललकारा, बल्कि गांव-गांव जाकर सामाजिक बदलाव की मशाल भी थाम ली। युवा पत्रकार ललित पांडे अब उस नई पीढ़ी के प्रतीक बनते जा रहे हैं, जो अपने दम पर हाशिए पर खड़े समाज के लिए आवाज़ उठा रही है। दलितों, पिछड़ों और ग्रामीणों की सेवा में जुटे ललित ने साबित किया कि अगर जज़्बा हो तो सीमाएं भी रास्ता देने लगती हैं। पाठा जैसे बीहड़ क्षेत्र में, जहां कभी बबली कोल जैसे डकैतों का आतंक था, वहां ललित पांडे ने अपने जीवन से इतिहास रच दिया।

वह दिन आज भी क्षेत्र के लोगों को याद है जब डकैत बबली कोल ने ललित पांडे के चाचा को अगवा कर लिया था। चारों तरफ दहशत का माहौल था, लेकिन ललित पीछे नहीं हटे। उन्होंने साफ कहा कि वह अपने चाचा को छुड़ाकर ही दम लेंगे। पुलिस प्रशासन के सुस्त रवैये से नाराज़ होकर ललित खुद बीहड़ों की ओर बढ़े और बबली कोल गैंग से आमने-सामने की लड़ाई के बाद अपने चाचा को सकुशल छुड़ाकर वापस चित्रकूट लौटे। उनके साहस और दृढ़ता से प्रभावित होकर उस समय के एसपी ने उन्हें शस्त्र लाइसेंस दिलाने का आश्वासन भी दिया था, लेकिन आज तक वह केवल वादा ही रहा। बावजूद इसके, ललित ने हिम्मत नहीं हारी। घटना के तीसरे दिन ही बबली कोल अपने पूरे गैंग के साथ खात्मे का शिकार हुआ और पाठा में एक नए युग की शुरुआत हुई—युवाओं के युग की, जिसकी अगुवाई खुद ललित पांडे ने की।

यह लड़ाई सिर्फ डकैतों तक सीमित नहीं रही। ललित ने जल, जंगल और जमीन के सवालों को उठाया, ग्रामीणों की समस्याओं को लेकर प्रशासन से टकराव किया, और अपनी पत्रकारिता के दम पर दबे-कुचले समाज की आवाज़ बन गए। मानिकपुर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टरों की कमी को लेकर उन्होंने आवाज़ उठाई और नियुक्ति सुनिश्चित कराई। अस्पताल के पास की टूटी सड़क की मरम्मत से लेकर गांवों में हैंडपंप, बिजली के खंभे और तार खिंचवाने तक ललित की भागीदारी हर मोर्चे पर रही। गांव-गांव घूमते हुए वह कैमरा, माइक और कलम के साथ न केवल खबर बना रहे हैं, बल्कि खुद बदलाव के सूत्रधार भी बन चुके हैं।

सामाजिक सक्रियता के साथ-साथ ललित ने लोकतंत्र की बुनियाद में भी अपनी हिस्सेदारी दर्ज कराई। उन्होंने ग्राम पंचायत हेला बगदरी से प्रधान पद का चुनाव लड़ा और सिर्फ एक वोट से पराजित हुए। यह हार उनके इरादों को तोड़ न सकी, बल्कि और मजबूत कर गई। वे खुद को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की उस कविता से जोड़ते हैं जिसमें कहा गया था—”ना झुकेंगे, ना थकेंगे, और ना हार मानेंगे।”

आज ललित पांडे एक प्रमुख समाचार पत्र संस्थान में कार्यरत हैं और साथ ही साथ एक सक्रिय समाजसेवी के रूप में पाठा क्षेत्र के युवाओं की उम्मीद बन चुके हैं। उनका सफर बताता है कि पत्रकारिता केवल माइक पकड़ने का काम नहीं, बल्कि वह परिवर्तन की मशाल बन सकती है, जो बंजर जमीन में भी जीवन का संचार कर दे। जब कोई युवा यह कहता है कि “मैं अपने गांव के लिए कुछ कर रहा हूं”, तो वह केवल नारा नहीं होता, वह एक मिशन होता है—जैसा कि ललित पांडे ने अपने जीवन से सिद्ध कर दिखाया है।

C P Dwivedi
C P Dwivedihttps://sarasbhavna.com
लेखक परिचय : चन्द्र प्रकाश द्विवेदी, चित्रकूट निवासी एक सक्रिय पत्रकार, लेखक, शिक्षाविद् और सामाजिक विचारक हैं, जो पिछले दो दशकों से हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र ‘सरस भावना’ के संपादक के रूप में जनपक्षीय पत्रकारिता कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार संस्थानों से की और अपने लेखन तथा संपादन कौशल से बुंदेलखंड की पत्रकारिता को नई दिशा दी। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर (M.A.), कंप्यूटर साइंस में मास्टर डिग्री (M.Sc. CS), सामाजिक कार्य में स्नातकोत्तर (MSW), पत्रकारिता एवं जनसंचार में डिग्री, और क़ानूनी ज्ञान में स्नातक (L.L.B.) की शिक्षा प्राप्त की है। वे एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं — एक संवेदनशील पत्रकार, प्रतिबद्ध समाजसेवी, करियर काउंसलर, राजनीतिक विश्लेषक, अधिवक्ता और व्यंग्यकार। वे शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि परिवर्तन और ग्रामीण विकास जैसे जनहित से जुड़े विषयों पर निरंतर काम कर रहे हैं। वर्तमान में वे बुंदेली प्रेस क्लब के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और सरकार से मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकारों में शुमार हैं। लेखन नाम बड़का पंडित‘’ के नाम से वे राजनीतिक पाखंड, जातिवाद, दिखावटी विकास, मीडिया के पतन और सामाजिक विडंबनाओं पर तीखे, मगर प्रभावशाली व्यंग्य लिखते हैं, जो समाज को सोचने और बदलाव के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी न सिर्फ व्यंग्य का माध्यम है, बल्कि बुंदेलखंड की पीड़ा, चेतना और संघर्ष की आवाज़ भी हैऔर शिक्षा, स्वास्थ्य व ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में सक्रिय रूप से कार्यरत हैं।
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