चित्रकूट/बांदा। राजनीति की असल परिभाषा क्या होती है, यह शनिवार को बांदा जिले के बबेरू विधानसभा क्षेत्र में उस समय देखने को मिला, जब शिवनी गांव में बुलडोजर एक्शन के दौरान प्रशासन ने 26 साल पुराने कृषक सेवा समिति भवन को गिरा दिया। इस कार्रवाई के दौरान वहां रह रहे लोगों ने विरोध किया, लेकिन प्रशासन ने अपनी सख्ती जारी रखी। इस पूरे घटनाक्रम में सबसे ज्यादा जो चर्चा में रहा, वह था बांदा सदर विधायक प्रकाश चंद्र द्विवेदी का अफसरों को ललकारता हुआ अंदाज। उन्होंने मौके पर पहुंचते ही प्रशासन को चेताया – “अगर मनमानी करोगे, तो देख लूंगा, नौकरी करना सिखा दूंगा।” यह सिर्फ एक चेतावनी नहीं थी, बल्कि उस जनप्रतिनिधि का साहसिक उदाहरण था जो जनता के लिए अफसरशाही से दो-टूक बात करता है।
द्विवेदी की यह दृढ़ता, आज चित्रकूट के जनप्रतिनिधियों की तुलना में एक आईना बनकर खड़ी हो गई है। चित्रकूट में चाहे बस स्टैंड हटाने का मामला हो, दिव्यांग बच्चों पर लाठीचार्ज या फिर अवैध खनन, हर बार नेता सिर्फ जांच के नाम पर खुद को बचाते नजर आते हैं। अफसरों से आंख मिलाना तो दूर, कई बार तो वे चाय की प्याली में आत्मसम्मान डुबोकर बैठ जाते हैं। शिवनी प्रकरण में विधायक द्विवेदी का कहना साफ था – “सरकार की मंशा के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं चलेगी। जनता के साथ अन्याय बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।” यही बयान चित्रकूट के मौजूदा नेतृत्व की कमजोरी को उजागर करता है, जो अक्सर सोशल मीडिया पोस्ट और दिखावटी बैठकों तक सिमटकर रह गया है।
इस पूरे घटनाक्रम ने एक सवाल खड़ा कर दिया है – क्या चित्रकूट को भी एक प्रकाश की जरूरत है? एक ऐसा नेता जो अफसरों की आंखों में आंख डालकर जनता के हक की बात कर सके। जो कुर्सी बचाने की राजनीति छोड़कर सच्ची जनसेवा कर सके। अब वक्त है कि चित्रकूट के नेता आत्ममंथन करें और समझें कि असली जनप्रतिनिधि वही होता है जो जनता की आवाज बनकर सिस्टम से टकराने का हौसला रखता है।