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Sunday, June 22, 2025
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जहाँ सेवा है, वहाँ हरेश्याम हैं – चित्रकूट के मूक योद्धा की कहानी” तुलसीदास सोसाइटी में समाज के लिए निःस्वार्थ समर्पण

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:सामाजिक कार्य करना आसान नहीं होता – खासकर तब जब वो दिखावे की नहीं, बल्कि ज़मीन पर बदलाव लाने की बात हो। हरेश्याम मिश्र, जो आज तुलसीदास सोसाइटी के माध्यम से चित्रकूट और उसके ग्रामीण अंचलों में विकास, शिक्षा और जागरूकता की लौ जलाए हुए हैं, किसी बड़ी पदवी के मोहताज नहीं, बल्कि अपने कर्मों से पहचाने जाते हैं। जहाँ सरकारी योजनाएँ पहुँच नहीं पातीं, वहाँ हरेश्याम जी अपने तंत्रो से , सुवहिधाये दिलवाते है उन्होंने चित्रकूट के दूरस्थ गांवों में स्वच्छता, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और पर्यावरण के मुद्दों पर ना केवल अभियान चलाया, बल्कि स्थानीय युवाओं और स्वयंसेवकों को भी प्रशिक्षित कर एक जनांदोलन खड़ा किया।

06 जुलाई 1979 को जन्मे हरेश्याम मिश्रा, जो वर्तमान में तुलसीदास सोसाइटी, चित्रकूट में समाज सेवा के विविध कार्यों में संलग्न हैं, एक ऐसे बहुपरिचित नाम बन चुके हैं जो वर्षों से ग्रामीण विकास और स्वावलंबन को समर्पित हैं। मिश्रा ने 1998 में अपने करियर की शुरुआत दीनदयाल शोध संस्थान, चित्रकूट में की, जहाँ उन्होंने 12 वर्षों तक जेपी फाउंडेशन के साथ जुड़कर 500 से अधिक गांवों में रोजगार प्रशिक्षण कार्य किए। इसके बाद वह जन शिक्षण संस्थान (JSS) में प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर के रूप में कार्यरत रहे और फिर कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) में सीनियर रिसर्च फेलो के रूप में किसानों के लिए नवाचारों और प्रशिक्षणों का नेतृत्व किया। उनका अनुभव केवल NGO या प्रशिक्षण केंद्रों तक ही सीमित नहीं रहा। उन्होंने अमृत महायोजना, झाँसी जैसे सरकारी परियोजनाओं में असिस्टेंट प्रोजेक्ट मैनेजर की भूमिका निभाई। वर्तमान में वह Jeet Diesels, सतना में ब्रांच मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं, लेकिन इससे इतर, उनके सामाजिक सरोकार तुलसीदास सोसाइटी के माध्यम से निरंतर जारी हैं।
मिश्रा सिर्फ योजना बनाते नहीं, उसे जमीन पर उतारते भी हैं। उनके पास विडियोग्राफी, फोटोग्राफी, शॉर्ट फिल्म निर्माण, कार्यक्रम प्रबंधन, डिजिटल मीडिया व डिज़ाइनिंग जैसी तकनीकी दक्षताएँ हैं, जिनका उपयोग वह जनजागरूकता अभियानों में करते हैं – विशेषकर पर्यावरण, रोजगार और शिक्षा के क्षेत्र में। उससे समाज में प्रेरणा, जागरूकता व पारदर्शिता लाने का प्रयास करते हैं। उनकी बनाई लघु फिल्मों और फील्ड डाक्युमेंटेशन का उपयोग विभिन्न प्रशिक्षणों और तुलसीदास सोसाइटी जिअसे संस्थाओं और सामाजिक अभियानों में किया जा रहा है। बच्चों के लिए ‘गुरु’, युवाओं के लिए ‘मार्गदर्शक’, वह नियमित रूप से ग्रामीण बच्चों को मूल्यपरक शिक्षा, नैतिकता और आत्मविश्वास के साथ जीने की प्रेरणा देते हैं। युवाओं को वह स्वरोजगार, डिजिटल कौशल और नेतृत्व क्षमता में प्रशिक्षित कर रहे हैं – ताकि वे खुद आत्मनिर्भर बनें और दूसरों को भी संबल दे सकें। पर्यावरण के सजग प्रहरी, हरेश्याम मिश्रा ने तुलसीदास सोसाइटी के साथ मिलकर वृक्षारोपण, जल संरक्षण, और प्लास्टिक मुक्त गांव जैसे अभियानों को जनभागीदारी के माध्यम से सफल बनाया है। वे केवल पौधे नहीं लगाते, बल्कि लोगों को उसके पीछे की चेतना भी समझाते हैं – “एक पेड़, एक भविष्य”। आज जब अधिकांश लोग सामाजिक कार्य को ‘प्रोजेक्ट’ या ‘फंड’ से जोड़कर देखते हैं, हरेश्याम मिश्रा अपने स्वाभाविक कर्तव्यबोध से प्रेरित होकर बिना किसी प्रचार की चाहत के लगातार समाज सेवा में प्रयासरत हैं।

C P Dwivedi
C P Dwivedihttps://sarasbhavna.com
लेखक परिचय: चंद्रप्रकाश द्विवेदी , चित्रकूट निवासी एक सक्रिय पत्रकार, लेखक, शिक्षाविद् और सामाजिक विचारक हैं, जो पिछले दो दशकों से हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र ‘सरस भावना’ के संपादक के रूप में जनपक्षीय पत्रकारिता कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार संस्थानों से की और अपने लेखन तथा संपादन कौशल से बुंदेलखंड की पत्रकारिता को नई दिशा दी। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर (M.A.), कंप्यूटर साइंस में मास्टर डिग्री (M.Sc. CS), सामाजिक कार्य में स्नातकोत्तर (MSW), पत्रकारिता एवं जनसंचार में डिग्री, और क़ानूनी ज्ञान में स्नातक (L.L.B.) की शिक्षा प्राप्त की है। वे एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं — एक संवेदनशील पत्रकार, प्रतिबद्ध समाजसेवी, करियर काउंसलर, राजनीतिक विश्लेषक, अधिवक्ता और व्यंग्यकार। वे शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि परिवर्तन और ग्रामीण विकास जैसे जनहित से जुड़े विषयों पर निरंतर काम कर रहे हैं। वर्तमान में वे बुंदेली प्रेस क्लब के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और सरकार से मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकारों में शुमार हैं। लेखन नाम बड़का पंडित‘’ के नाम से वे राजनीतिक पाखंड, जातिवाद, दिखावटी विकास, मीडिया के पतन और सामाजिक विडंबनाओं पर तीखे, मगर प्रभावशाली व्यंग्य लिखते हैं, जो समाज को सोचने और बदलाव के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी न सिर्फ व्यंग्य का माध्यम है, बल्कि बुंदेलखंड की पीड़ा, चेतना और संघर्ष की आवाज़ भी है।

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