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Sunday, June 22, 2025
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धड़ल्ले से हो रहा अवैध खनन, चांदी घाट और धौरहरा बन चुके ‘रेत के साम्राज्य’

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चित्रकूट में माफिया का बोलबाला, प्रशासन ‘फील्ड’ की बजाय ‘फाइल’ में व्यस्त
शिकायतकर्ताओं पर सोशल मीडिया हमले तेज़, पत्रकारों को बनाया जा रहा निशाना

चित्रकूट | संवाददाता

कर्वी तहसील क्षेत्र के चांदी घाट और धौरहरा घाट में अवैध खनन अब ‘सामान्य प्रक्रिया’ बन चुका है। दिन हो या रात, ट्रैक्टर-ट्रॉलियां और ओवरलोड ट्रक रेत लेकर ऐसे दौड़ते हैं मानो ये इलाका कोई कानूनी राज्य नहीं, बल्कि रेत माफिया का ‘प्राइवेट स्टेट’ हो।

खनन माफिया की पकड़ या प्रशासन की पकड़ ढीली?

स्थानीय सूत्रों की मानें तो खनन में संलिप्त लोगों की पहुँच न सिर्फ स्थानीय अधिकारियों तक है, बल्कि कुछ चुनिंदा राजनीतिक संरक्षण भी इनके साथ है। यही कारण है कि ग्रामीणों की शिकायतों पर ‘जांच जारी है’ की चिर-परिचित स्क्रिप्ट के अलावा कुछ नहीं होता।

“कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि जांच भी माफिया के कहने पर होती है, ताकि दिखाया जा सके कि ‘कुछ हो रहा है’,” — एक सेवानिवृत्त शिक्षक का तंज।

बालू घाटों पर सीधा कब्जा, और सीधा लेन-देन

चांदी और धौरहरा घाट पर ‘तय रेट’ से अधिक रेत लादना आम बात है। रॉयल्टी की सीमा तय है, पर ट्रकों की भूख उससे कहीं ज्यादा। कोई रोकने वाला नहीं, क्योंकि रोकने वाले या तो मिले हुए हैं, या चुप कर दिए गए हैं।

“रेत तो बस प्रतीक है, असल में बिक रही है सिस्टम की चुप्पी,” — एक युवा सामाजिक कार्यकर्ता की प्रतिक्रिया।

पत्रकारिता को बनाया गया टारगेट, सच्चाई बोलने पर सजा

हाल ही में एक स्वतंत्र पत्रकार द्वारा इन घाटों पर हो रहे खनन को उजागर किया गया, तो सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ अभियान शुरू हो गया।
उन्हें ‘बिकाऊ’ कहकर बदनाम करने की कोशिश की गई, जबकि सारा मामला रिपोर्ट में तस्वीरों, वीडियो और दस्तावेज़ों के साथ प्रस्तुत था।

“जब कोई पत्रकार ट्रैक्टर की फोटो दिखाता है तो उसे बदनाम किया जाता है, लेकिन ट्रैक्टर वाले को ‘सम्मान’ मिलता है — यही आज का नया गणराज्य है,” — बड़का पंडित का व्यंग्य।

प्रशासन ‘ऑफलाइन’, माफिया ‘ऑनलाइन’

जहां ग्रामीण इंटरनेट की धीमी स्पीड से जूझ रहे हैं, वहीं माफिया के सोशल मीडिया मैनेजर चौबीसों घंटे एक्टिव हैं — कोई भी आवाज़ उठे, तुरंत ट्रोलिंग, निजी हमले, और अफवाहें शुरू कर दी जाती हैं।

“यहाँ खनन के साथ-साथ चरित्र-हनन का भी पूरा उद्योग चलता है,” — एक वरिष्ठ स्थानीय पत्रकार।

चित्रकूट की ज़मीन की चीख सुनाई नहीं देती क्या?

अब सवाल यह नहीं है कि खनन हो रहा है या नहीं —
सवाल यह है कि कब तक रेत की कीमत पर खामोशी खरीदी जाती रहेगी?
क्या चित्रकूट की भूमि सिर्फ आध्यात्मिकता की प्रतीक है या यहाँ की मिट्टी में आवाज़ उठाने का साहस भी बचा है?

C P Dwivedi
C P Dwivedihttps://sarasbhavna.com
लेखक परिचय: चंद्रप्रकाश द्विवेदी , चित्रकूट निवासी एक सक्रिय पत्रकार, लेखक, शिक्षाविद् और सामाजिक विचारक हैं, जो पिछले दो दशकों से हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र ‘सरस भावना’ के संपादक के रूप में जनपक्षीय पत्रकारिता कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार संस्थानों से की और अपने लेखन तथा संपादन कौशल से बुंदेलखंड की पत्रकारिता को नई दिशा दी। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर (M.A.), कंप्यूटर साइंस में मास्टर डिग्री (M.Sc. CS), सामाजिक कार्य में स्नातकोत्तर (MSW), पत्रकारिता एवं जनसंचार में डिग्री, और क़ानूनी ज्ञान में स्नातक (L.L.B.) की शिक्षा प्राप्त की है। वे एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं — एक संवेदनशील पत्रकार, प्रतिबद्ध समाजसेवी, करियर काउंसलर, राजनीतिक विश्लेषक, अधिवक्ता और व्यंग्यकार। वे शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि परिवर्तन और ग्रामीण विकास जैसे जनहित से जुड़े विषयों पर निरंतर काम कर रहे हैं। वर्तमान में वे बुंदेली प्रेस क्लब के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और सरकार से मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकारों में शुमार हैं। लेखन नाम बड़का पंडित‘’ के नाम से वे राजनीतिक पाखंड, जातिवाद, दिखावटी विकास, मीडिया के पतन और सामाजिक विडंबनाओं पर तीखे, मगर प्रभावशाली व्यंग्य लिखते हैं, जो समाज को सोचने और बदलाव के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी न सिर्फ व्यंग्य का माध्यम है, बल्कि बुंदेलखंड की पीड़ा, चेतना और संघर्ष की आवाज़ भी है।

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