महज 17 साल की उम्र में शादी, इंटर की पढ़ाई पूरी होते ही किताबों से दूरी, फिर ससुराल में पर्दा प्रथा और घरेलू जिम्मेदारियों ने जैसे हर सपना ढक दिया। लेकिन कुछ करने की चाह और खुद को साबित करने की ललक अंदर ही अंदर पलती रही। जब तीनों बेटे 3, 4 और 5वीं कक्षा में थे, तभी से पढ़ाई फिर से शुरू की। घर का काम निपटाकर स्कूल भेजतीं और खुद रेगुलर कॉलेज जातीं। पति ने एक वादा किया था — “जितना पढ़ना चाहो, मैं साथ दूंगा।” और उन्होंने वादा निभाया।
बीए, बीजेएमसी, एमजेएमसी की पढ़ाई के बाद अब पत्रकारिता में पीएचडी कर रही हैं। खबर लहरिया जैसी ग्रामीण महिलाओं पर केंद्रित पत्रिका पर रिसर्च कर चुकी हैं। पत्रकारिता और शिक्षण में भी अनुभव रहा — हिंदुस्तान अखबार, तुलसी पत्र (सीतापुर), दो साल प्राइवेट कॉलेज में शिक्षण और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ऑफर को बच्चों के भविष्य के लिए ठुकराना, यह बताता है कि कैसे उन्होंने मां और प्रोफेशनल का संतुलन बनाया।
सामाजिक कार्यों में सक्रियता भी निरंतर रही — भारतीय साहित्यिक संस्थान की आजीवन सदस्य, दृष्टि संस्था की 18 वर्षों से सदस्य, और भारत कल्याण मंच की कार्यकर्ता। यही सामाजिक जुड़ाव राजनीति की तरफ ले गया। 1995 से भाजपा से जुड़ाव हुआ और 2005 में उत्तर प्रदेश में सक्रिय राजनीति की शुरुआत हुई।
इसके बाद तो उन्होंने चित्रकूट विधानसभा क्षेत्र को केंद्र में रखकर न सिर्फ संगठन में कार्य किया, बल्कि चित्रकूट, फतेहपुर, बांदा, महोबा, हमीरपुर, सतना, रीवा, प्रयागराज, कौशांबी, मानिकपुर और कर्वी जैसी सीटों पर महिला मोर्चा, मुख्य संगठन और चुनावी ज़िम्मेदारियों को बखूबी निभाया।
वे भाजपा महिला मोर्चा की महामंत्री, फिर अध्यक्ष, उसके बाद मुख्य भाजपा में महामंत्री (दिनेश तिवारी जी की टीम में), फिर जिला संयोजक, बुंदेलखंड क्षेत्र की सदस्य, प्रदेश महामंत्री महिला मोर्चा, प्रदेश मंत्री (केशव प्रसाद मौर्य की टीम), प्रदेश उपाध्यक्ष (महेंद्र पांडेय और स्वतंत्रदेव सिंह की टीम) रहीं।
इतना ही नहीं, वे अब तक 10 से अधिक जिलों की संगठनात्मक प्रभारी रह चुकी हैं, जिनमें चित्रकूट, फतेहपुर, हमीरपुर, जालौन, महोबा, बांदा, कौशांबी, भदोही, प्रयागराज आदि शामिल हैं।
हाल ही में वे प्रदेश संगठन चुनाव की सह-प्रभारी रहीं और वर्तमान में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ अभियान की प्रदेश सह-संयोजक हैं। इसके साथ-साथ फतेहपुर ज़िले की प्रभारी की जिम्मेदारी भी निभा रही हैं। उनका कहना है कि यह सबकुछ पति और बच्चों के सहयोग से संभव हुआ। तीनों बेटे आज उच्च शिक्षा और संस्कारों की मिसाल हैं – बड़ा बेटा एमबीए कर मल्टीनेशनल कंपनी में, दूसरा बेटा केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी (इंग्लैंड) में वैज्ञानिक है, और तीसरा बेटा एमबीबीएस व लंदन से डायबटीज में विशेषज्ञता लेकर मेडिकल ऑफिसर है।
आज जब चित्रकूट और बुंदेलखंड की राजनीति में महिला नेतृत्व की बात होती है, तो उनका नाम सम्मानपूर्वक लिया जाता है — निर्विवाद, निष्ठावान और निस्वार्थ नेतृत्त्व। उन्होंने पर्दे से मंच तक की जो यात्रा तय की, वह न केवल राजनीति में बल्कि समाज में महिला सशक्तिकरण की सबसे प्रेरक कहानी बन चुकी है।