Thursday, July 10, 2025
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शौचालय में घुसा लोकतंत्र: जो शौचालय साफ करेगा, उसी को मिलेगा वोट अब प्रधान प्रत्याशियों को सफाई करनी होगी टॉयलेट, तभी मिलेगा वोट

कभी लोग चाय-पकौड़े बांटकर वोट पाते थे। फिर समय आया जब शराब, साड़ी और नोट ने गांव के लोकतंत्र में परिपक्वता का परिचय दिया। लेकिन अब फुलेरा गांव के पंचायत चुनावों ने नई परिभाषा गढ़ दी है – ‘जो  शौचालय साफ करेगा, वोट उसी को मिलेगा।’ लोकतंत्र अब नारे से आगे निकलकर नाले और नालियों में जा पहुँचा है।  पंचायत चुनावों की सरगर्मी पूरे उफान पर है। गांव के दो प्रमुख प्रत्याशी – मंजू देवी और क्रांति देवी – चुनावी मैदान में आमने-सामने हैं। मुद्दे कई हैं: सड़क, बिजली, पानी, पर इनमें कोई टिक नहीं पा रहा, क्योंकि गांववालों ने अब असली परीक्षा तय कर दी है – टॉयलेट की सफाई!

गांव के प्राथमिक विद्यालय का शौचालय वर्षों से सफाई के इंतजार में था। बच्चों ने इसे “भूत बंगला” कहना शुरू कर दिया था और शिक्षक दूर से ही प्रणाम कर निकल जाते थे। लेकिन जैसे ही पंचायत चुनाव की तारीख घोषित हुई, इस ‘अवहेलित इमारत’ का महत्व बढ़ गया।  चुनाव प्रचार के बीच जैसे ही किसी ने मजाक में कह दिया, “जो टॉयलेट साफ करेगा, वोट उसी को मिलेगा,” यह मजाक फुलेरा की सच्चाई बन गया। गांववालों ने इस चुनौती को सीरियसली ले लिया। और देखिए, लोकतंत्र ने अब झाड़ू और हार्पिक का सहारा ले लिया।

प्रत्याशी मंजू देवी सुबह पांच बजे झाड़ू, बाल्टी और डोमेस्टिक क्लीनर के साथ विद्यालय पहुंचीं। लेकिन जैसे ही उन्होंने ताला खोला, सामने क्रांति देवी पहले से बाल्टी थामे खड़ी थीं। दोनों की नज़रें मिलीं। कुछ क्षण के लिए लोकतंत्र स्तब्ध हो गया।  पहले मैं आई हूँ!” मंजू देवी बोलीं। “पर मैंने बाल्टी पहले भरी थी!” क्रांति देवी ने पलटवार किया।

फिर क्या था, गांव के इतिहास में पहली बार दो प्रत्याशियों के बीच ‘साफ-सफाई संग्राम’ छिड़ गया। बाल्टियाँ उड़ने लगीं, हार्पिक छलकने लगा और झाड़ू से वोट की राजनीति पोछी जाने लगी। किसी ने इस पूरे घटनाक्रम को मोबाइल में रिकॉर्ड कर डाला। जैसे ही यह वीडियो “फुलेरा की फाइट फॉर टॉयलेट” के नाम से सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, लोग पंचायत चुनाव की गंभीरता पर फिर से विचार करने लगे।

लोकल यूट्यूबर बबलू जी ने इसे “पंचायत 4 की ट्रेलर क्लिप” घोषित कर दिया और बकायदा पोस्टर बनाया –“ग्राम फुलेरा में लोकतंत्र की नई गंध: मंजू बनाम क्रांति – द टॉयलेट वॉर”   गांव के बुजुर्ग लक्ष्मण बाबा बोले, “पहले तो नेताजी आते थे वोट मांगने, अब झाड़ू लेकर आए हैं। कम से कम स्कूल का टॉयलेट तो साफ हुआ!”  वहीं स्कूल की शिक्षिका रीना मैडम ने राहत की सांस लेते हुए कहा, “अगर हर चुनाव में ऐसे ही शौचालय साफ हों, तो हर साल चुनाव ही होते रहें। जब दोनों प्रत्याशियां साफ-सफाई में व्यस्त थीं, तो कुछ गांववालों ने आगे बढ़कर ‘फ्लश की कार्यप्रणाली’ पर बहस शुरू कर दी। किसी ने कहा, “अगर फ्लश सही से काम करता तो टॉयलेट इतना गंदा क्यों होता?”

लोकतंत्र की दिशा या दुर्दशा? पंचायत सीजन 4 का यथार्थवादी ट्रेलर

“पंचायत” वेब सीरीज़ के सीज़न 3 में तो हमने देखा था कि किस प्रकार प्रत्याशी स्कूल की दीवार पर रंग करवाने और शौचालय की सफाई करवा कर वोट बैंक को साधने की कोशिश करते हैं। लेकिन फुलेरा में तो अब जीवन सीजन 4 चल रहा है, जहां मतदाता भी इतने जागरूक हो चुके हैं कि साफ-सुथरे शौचालय को देखकर ही तय करते हैं—‘यही हमारा नेता होगा!’  इसमें कोई संदेह नहीं कि पंचायत 4 का यह लाइव एपिसोड भारत के लोकतंत्र का अद्भुत चित्र प्रस्तुत करता है।

C P Dwivedi
C P Dwivedihttps://sarasbhavna.com
लेखक परिचय : चन्द्र प्रकाश द्विवेदी, चित्रकूट निवासी एक सक्रिय पत्रकार, लेखक, शिक्षाविद् और सामाजिक विचारक हैं, जो पिछले दो दशकों से हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र ‘सरस भावना’ के संपादक के रूप में जनपक्षीय पत्रकारिता कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार संस्थानों से की और अपने लेखन तथा संपादन कौशल से बुंदेलखंड की पत्रकारिता को नई दिशा दी। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर (M.A.), कंप्यूटर साइंस में मास्टर डिग्री (M.Sc. CS), सामाजिक कार्य में स्नातकोत्तर (MSW), पत्रकारिता एवं जनसंचार में डिग्री, और क़ानूनी ज्ञान में स्नातक (L.L.B.) की शिक्षा प्राप्त की है। वे एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं — एक संवेदनशील पत्रकार, प्रतिबद्ध समाजसेवी, करियर काउंसलर, राजनीतिक विश्लेषक, अधिवक्ता और व्यंग्यकार। वे शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि परिवर्तन और ग्रामीण विकास जैसे जनहित से जुड़े विषयों पर निरंतर काम कर रहे हैं। वर्तमान में वे बुंदेली प्रेस क्लब के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और सरकार से मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकारों में शुमार हैं। लेखन नाम बड़का पंडित‘’ के नाम से वे राजनीतिक पाखंड, जातिवाद, दिखावटी विकास, मीडिया के पतन और सामाजिक विडंबनाओं पर तीखे, मगर प्रभावशाली व्यंग्य लिखते हैं, जो समाज को सोचने और बदलाव के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी न सिर्फ व्यंग्य का माध्यम है, बल्कि बुंदेलखंड की पीड़ा, चेतना और संघर्ष की आवाज़ भी हैऔर शिक्षा, स्वास्थ्य व ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में सक्रिय रूप से कार्यरत हैं।
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