चित्रकूट में बीते कुछ दिनों से हो रही मूसलधार बारिश ने एक बार फिर साबित कर दिया कि मां प्रकृति को किसी फोकसबाज समाजसेवक की जरूरत नहीं होती। मंदाकिनी नदी, जिसे अब तक ‘जल संरक्षण अभियान’, ‘सेल्फी विद स्लोगन’ और ‘फोटोशूट पाखंड’ के भरोसे छोड़ दिया गया था, उसने खुद को बादलों से दोस्ती कर के स्वतः ही साफ कर लिया है। चार महीने पहले तक जो नदी प्रशासनिक बैठकों, नेताओं की घोषणाओं और धार्मिक संगठनों की दिखावटी भागीदारी के बीच दम तोड़ रही थी, वह अब खुद अपनी धारा में जीवन और लज्जा दोनों को बहा चुकी है। गंगा आरती करने वालों के पास अब वक्त नहीं है, उनके कैमरे भीग जाते हैं। और फेसबुक लाइव के लिए जो साउंड सिस्टम लगाए जाते थे, वो अब बारिश में शॉर्ट हो रहे हैं। साफ है “जब आकाशीय जल आया, तब समाजसेवी छुट्टी पर चले गए।”
इस बार मानसून समय से कुछ पहले ही आया, लेकिन फोकसबाज समाजसेवकों का ‘मौसम’ अब भी वही पुराना है कृ जब नदियां सूखें तो शंख बजाओ, और जब नदियां भरें तो मौन व्रत धारण करो। पिछले साल इसी समय मंदाकिनी को बचाने के नाम पर दर्जनों कागज़ी योजनाएं बनाई गईं, सैंकड़ों पोस्टर छपे, बैनर लगे, और ‘प्रभात फेरी’ निकाली गई। लेकिन इस बार चुप्पी! न कोई मिट्टी उठाने वाला दिखा, न कोई जल भरने की घोषणा। शायद इस बार पोस्टर भीग जाते, और फोटो में छाता आ जाता।
कहते हैं कि मां जब नाराज़ होती है तो श्राप देती है, लेकिन मंदाकिनी मां ने इस बार जवाब में सिर्फ धुलाई दी है कृ घाटों की, सीवेज की, और सबसे ज़्यादा समाजसेवियों की। नदी के किनारे बने आश्रमों और धर्मशालाओं के गंदे पानी के स्रोत भी फिलहाल बंद पड़े हैं। कारण? भारी बारिश और बिजली गुल। ये वही संस्थान हैं जो हर साल श्नदी पूजन करते हैं, लेकिन साल भर श्नदी दूषण me लगे रहते हैं।
नगर पालिका और प्रशासन भी इस मौके पर राहत महसूस कर रहा है। जो काम उन्हें करोड़ों के बजट और ठेके से करना था, उसे बारिश ने मुफ्त में कर डाला। न कोई टेंडर, न कोई फाइल, न कोई उद्घाटन। कुछ अधिकारियों ने तो निजी बातचीत में यहां तक कह दिया कृ “बारिश से सफाई हो गई, अब हम क्लोजर रिपोर्ट लगा देंगे कि नदी शुद्ध हो गई।”
और जनता? वह अब भी उसी धारणा में जी रही है कि “कोई तो कर रहा होगा”। जबकि सच्चाई यही है कि इस बार मंदाकिनी ने खुद को बचा लिया, क्योंकि समाज ने पहले ही हाथ खड़े कर दिए थे। जो लोग सेल्फी लेकर कहते थे “हम नदी को बचाएंगे”, वे आज खुद अपने वाट्सएप स्टेटस से गायब हैं , क्योंकि नेटवर्क नहीं है, और जनता के सवालों का जवाब भी नहीं। निष्कर्ष यही है कि चित्रकूट की बारिश ने फर्जीवाड़े, दिखावे और ढोंग पर करारा तमाचा मारा है। मंदाकिनी का पानी आज भले ही उफान पर हो, लेकिन उसकी आंखों में अब भी सवाल है “जब मैं सूख रही थी, तब तुम कहां थे?”
मंदाकिनी ने एक बार फिर दिखा दिया कि वह मां है जब सबने साथ छोड़ दिया, तब भी वह स्वयं को संभाल गई। चित्रकूट के घाटों से आज सिर्फ बारिश का पानी नहीं बहा, ढोंग, दिखावा और दिखावटी समाजसेवियों का स्वांग भी बह गया। अब जब अगली गर्मी आएगी, और मंदाकिनी फिर सूखने लगेगी, तो देखना होगा कि फिर कौन आता है घाट पर कृ सेवा करने, या सेल्फी लेने? मंदाकिनी सिर्फ एक नदी नहीं, चित्रकूट की पहचान है। यह धार्मिक आस्था का केंद्र है, लेकिन बीते कुछ वर्षों में यह धीरे-धीरे श्इवेंट साइटश् बन गई है। यहां पर्यावरण के नाम पर धंधेबाज़ों की एक नई खेप तैयार हुई, जिनके लिए नदी सिर्फ एक सोशल मीडिया ब्रांड है। जबकि बरसात ने दिखा दिया कि प्रकृति को ढोंग नहीं, सच्चा संरक्षण चाहिए।
मां मंदाकिनी ने खुद को कर लिया साफ, चित्रकूट के उभरते समाजसेवियों की बारिश में छुट्टी!” मां मंदाकिनी ने ली खुद-ब-खुद सफाई की जिम्मेदारी
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