Thursday, July 10, 2025
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धनुष चौराहे पर दो फीट गहरा गड्ढा, सड़क पर कुआं, पत्रकारिता के दरवाज़े पर मौत, दैनिक जागरण ऑफिस के सामने गहरा गड्ढा, सैकड़ों वाहन लील चुका है ‘रोड का राक्षस’

चित्रकूट में विकास की बातें जितनी बुलंद होती हैं, हकीकत उतनी ही गड्ढों में दबी मिलती है। शहर के हृदयस्थल धनुषधारी चौराहे से प्रयागराज रोड की ओर बढ़ते ही मात्र 20 कदम चलने पर जो दृश्य दिखता है, वह किसी गांव की उबड़-खाबड़ पगडंडी का नहीं, बल्कि चित्रकूट नगर के सबसे व्यस्ततम और महत्त्वपूर्ण मार्ग का है। इसी मार्ग पर दैनिक जागरण झांसी कार्यालय स्थित है, यानी यह इलाका मीडिया, प्रशासन और जनता  तीनों की नज़रों के बीच में है, लेकिन इसके बावजूद वहां एक ऐसा जानलेवा गड्ढा महीनों से मुंह फैलाए पड़ा है, मानो वह शासन-प्रशासन की निष्क्रियता और  का प्रतीक बन चुका हो। यह कोई सामान्य सड़क खराबी नहीं, बल्कि सड़क के बीचों बीच बना ऐसा कुआं है, जिसमें बाइकें समा चुकी हैं, कारें धंस चुकी हैं, लेकिन फिर भी न तो कोई खबर छपी, न कोई अधिकारी हरकत में आया और न ही कोई ठेकेदार वहां झांकने गया।
स्थानीय दुकानदारों और राहगीरों के अनुसार, यह गड्ढा शुरुआती दिनों में छोटा था, लेकिन धीरे-धीरे यह गहराता और फैलता चला गया। अब हालत यह है कि सड़क का एक बड़ा हिस्सा इस गड्ढे के कारण ध्वस्त हो चुका है। गहराई की बात करें तो यह लगभग दो फीट तक हो गई है, और इसका दायरा इतना फैल चुका है कि दोपहिया वाहन सवारों के लिए यह पूरी तरह जानलेवा बन चुका है। ट्रैफिक की बात करें तो यह चौराहा चित्रकूट नगर को प्रयागराज से जोड़ता है, जिससे रोज़ाना हज़ारों दोपहिया, चारपहिया और मालवाहक वाहन गुजरते हैं। ऐसे में इस गड्ढे की स्थिति सिर्फ असुविधा नहीं, बल्कि एक खुला खतरा बन गई है। आए दिन वहां अचानक ब्रेक लगने से दुर्घटनाएं होती हैं, कई बार तो चारपहिया वाहन चपट जाते हैं, साइलेंसर उखड़ जाता है, नंबर प्लेट टूट जाती है और बाइक सवार गिरकर घायल हो जाते हैं।
स्थानीय व्यंग्यकार बड़का पंडित तंज कसते हैं गड्ढा अगर किसी गरीब की झोपड़ी के सामने होता तो अब तक सोशल मीडिया पर लाइव होता, लेकिन चूंकि यह अखबार के दरवाज़े पर है , अब खबर बनाना जोखिम भरा काम है!
स्थानीय दुकानदारों का कहना है कि कई बार नगर पालिका और पीडब्ल्यूडी विभाग को सूचना दी गई, लेकिन हर बार एक ही जवाब मिला ठेकेदार से बात हो गई है, जल्द मरम्मत होगी। लेकिन यह जल्द कब कभी नहीं में बदल गया, किसी को पता ही नहीं चला। महीनों बीत गए, और अब वह गड्ढा अकेला नहीं रहा , वह सिस्टम की लापरवाही, जवाबदेही के अभाव और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता का प्रतीक बन गया है। गड्ढा जैसे-जैसे बड़ा होता गया, वैसे-वैसे जनता की उम्मीदें छोटी होती गईं। और अब लोग तंज में कहने लगे हैं इस गड्ढे में गिरो तो सीधे मंदाकिनी घाट पहुंच जाओगे! क्योंकि न कोई चेतावनी बोर्ड वहां लगा है, न कोई बैरिकेडिंग, और न ही कोई रात में रिफ्लेक्टर यानी दुर्घटना मानो दावत की तरह खुले आम आमंत्रित की जा रही है।
इस संपूर्ण परिदृश्य से एक गहरी सच्चाई सामने आती है , समस्या केवल टूटी सड़क की नहीं है, बल्कि उस मानसिकता की है जहां जवाबदेही सत्ता के दबाव, और जनता की मजबूरी में खो जाती है। चित्रकूट जैसे तीर्थनगरी में यदि ऐसी सड़कें विकास का चेहरा हैं, तो फिर अंदाजा लगाया जा सकता है कि गांवों की दशा क्या होगी। बड़का पंडितश् की एक और टिप्पणी में कटाक्ष झलकता है गड्ढा सड़क में नहीं, सिस्टम में है। सड़क का गड्ढा कभी न कभी भर जाएगा, लेकिन प्रशासन  की ज़मीर में जो गड्ढा बन गया है, वह शायद कभी न भरे।

C P Dwivedi
C P Dwivedihttps://sarasbhavna.com
लेखक परिचय : चन्द्र प्रकाश द्विवेदी, चित्रकूट निवासी एक सक्रिय पत्रकार, लेखक, शिक्षाविद् और सामाजिक विचारक हैं, जो पिछले दो दशकों से हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र ‘सरस भावना’ के संपादक के रूप में जनपक्षीय पत्रकारिता कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार संस्थानों से की और अपने लेखन तथा संपादन कौशल से बुंदेलखंड की पत्रकारिता को नई दिशा दी। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर (M.A.), कंप्यूटर साइंस में मास्टर डिग्री (M.Sc. CS), सामाजिक कार्य में स्नातकोत्तर (MSW), पत्रकारिता एवं जनसंचार में डिग्री, और क़ानूनी ज्ञान में स्नातक (L.L.B.) की शिक्षा प्राप्त की है। वे एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं — एक संवेदनशील पत्रकार, प्रतिबद्ध समाजसेवी, करियर काउंसलर, राजनीतिक विश्लेषक, अधिवक्ता और व्यंग्यकार। वे शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि परिवर्तन और ग्रामीण विकास जैसे जनहित से जुड़े विषयों पर निरंतर काम कर रहे हैं। वर्तमान में वे बुंदेली प्रेस क्लब के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और सरकार से मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकारों में शुमार हैं। लेखन नाम बड़का पंडित‘’ के नाम से वे राजनीतिक पाखंड, जातिवाद, दिखावटी विकास, मीडिया के पतन और सामाजिक विडंबनाओं पर तीखे, मगर प्रभावशाली व्यंग्य लिखते हैं, जो समाज को सोचने और बदलाव के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी न सिर्फ व्यंग्य का माध्यम है, बल्कि बुंदेलखंड की पीड़ा, चेतना और संघर्ष की आवाज़ भी हैऔर शिक्षा, स्वास्थ्य व ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में सक्रिय रूप से कार्यरत हैं।
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