चित्रकूट, 30।मंदाकिनी तट पर स्थित श्रीधर आश्रम इस सप्ताह भक्ति, ज्ञान और दिव्यता की त्रिवेणी में डूबा रहा। 24 जून से 30 जून तक यहां दिव्य ज्योति जागृति सेवा संस्थान द्वारा सात दिवसीय श्रीराम कथा का आयोजन किया गया, जिसमें साध्वी दीपिका भारती जी ने भक्तों को रामकथा के विविध प्रसंगों से अवगत कराते हुए एक आध्यात्मिक यात्रा पर ले जाया। साध्वी जी के ओजस्वी कथन, भावपूर्ण भावनाएं और त्रेता युग के गूढ़ प्रसंगों की जीवंत व्याख्या ने कथा को महज आयोजन नहीं, एक अनुभूति बना दिया।
कथा की शुरुआत 24 जून को भव्य कलश यात्रा के साथ हुई। नगर भर की सैकड़ों महिलाएं सिर पर कलश लिए भक्ति संगीत और नृत्य के साथ श्रीधर आश्रम पहुँचीं। उनके पीछे-पीछे भजन मंडलियाँ, युवाओं की टोलियाँ और श्रद्धालुओं का जनसैलाब कथा स्थल तक पहुँचा। पूरा मार्ग ‘जय श्रीराम’ के नारों से गूंज उठा और वातावरण में आध्यात्मिक ऊर्जा व्याप्त हो गई।
कथा के प्रथम दिन साध्वी जी ने राम जन्म, बाल लीलाओं और अयोध्या की सामाजिक स्थिति का वर्णन करते हुए बताया कि कैसे श्रीराम केवल राजा नहीं, बल्कि मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, जिनके जीवन से धर्म, कर्तव्य और करुणा की शिक्षा मिलती है। दूसरे और तीसरे दिन ताड़का वध, विश्वामित्र आश्रम, जनकपुर यात्रा और स्वयंवर जैसे प्रसंगों के माध्यम से श्रीराम के चरित्र का विविध आयाम सामने आया।
चौथे दिन कथा ने गहराई पकड़ ली। अयोध्या लौटने पर राम के राज्याभिषेक की तैयारियों के बीच कैकयी के वरदान, दशरथ की पीड़ा और राम के वनवास जैसे प्रसंगों ने वातावरण को भावुक कर दिया। साध्वी जी ने कहा – “राम का वनगमन केवल एक निर्णय नहीं, धर्म की प्रतिष्ठा का आदर्श था।” उन्होंने भरत के चरित्र पर विशेष प्रकाश डाला और चित्रकूट की महिमा का वर्णन करते हुए बताया कि यही भूमि भरत की प्रतीक्षा, राम के मिलन और धर्म के उच्चतम उदाहरणों की साक्षी रही है।
कथा के छठे दिन सीता हरण, रावण की माया, पंचवटी, दंडकारण्य, हनुमान-सुग्रीव की मित्रता, वानर सेना की तैयारियों और सीता की खोज जैसे प्रसंगों को भावनात्मक और दार्शनिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया। साध्वी जी ने बताया कि किस प्रकार श्रीराम और उनकी सेना ने माया नगरी और राक्षसी शक्तियों का सामना करते हुए धर्म की स्थापना की। साथ ही, उन्होंने दीक्षा, साधना और दिव्य ज्ञान के महत्व को समझाते हुए कहा कि – “जब तक आत्मा का दीक्षा से जागरण नहीं होता, तब तक रामराज्य केवल कथा में रहेगा।”
कथा के अंतिम दिन राम-रावण युद्ध, विजय, अयोध्या लौटने और रामराज्य स्थापना के प्रसंगों से कथा का समापन हुआ। साध्वी जी ने कहा – “रामराज्य सत्ता नहीं, एक चेतना है – जहाँ न्याय, करुणा और सेवा सर्वोपरि होती है। आज आवश्यकता है उस चेतना को जगाने की, न कि केवल नारे लगाने की।” सप्ताह भर चलने वाली इस कथा में हजारों श्रद्धालुओं ने प्रतिदिन भाग लिया। कथा के बाद प्रतिदिन भव्य भंडारा आयोजित हुआ जिसमें हज़ारों लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया। पूरे आयोजन की व्यवस्था दिव्य ज्योति जागृति सेवा संस्थान के साधकों और स्थानीय सेवाव्रती कार्यकर्ताओं द्वारा की गई थी, जिनमें विशेष भूमिका स्वामी विश्वनाथानंद जी और सेवा समर्पित युवा मंडल की रही।
कथा के दौरान मंच पर अनेक गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे। महात्मा गांधी ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. भरत मिश्रा, पत्रकार महासंघ के उपाध्यक्ष राजकुमार याज्ञिक, तुलसीदास समिति के अध्यक्ष रामनरेश केसरवानी, चरखारी से अश्विनी चौबे , वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रकाश द्विवेदी, जयप्रकाश शुक्ला, रवि चतुर्वेदी, अरुण श्रीवास्तव, प्रमोद सिंह , दिव्या त्रिपाठी , दिनेश मिश्रा पूर्व विधायक , भैरो प्रसाद मिश्रा , पूर्व सांसद , चंद्र प्रकाश खरे, पूर्व जिलाध्यक्ष ,रविमाला सिंह सभासद , अशोक द्विवेदी , सुरेश सिंह , अतुल द्विवेदी , ओमप्रकाश सिंह सहित कई समाजसेवी एवं पत्रकार भी इस अवसर पर उपस्थित रहे। सभी अतिथियों का आयोजकों द्वारा अंगवस्त्र और श्रीफल भेंट कर सम्मान किया गया।
कथा के समापन अवसर पर संस्थान की ओर से मंच से सभी सहयोगियों, जनप्रतिनिधियों, प्रशासन, मीडिया, तकनीकी टीम, भंडारा समिति, स्वच्छता कार्यकर्ताओं और नगरवासियों का धन्यवाद किया गया। श्रद्धालुओं की सेवा में समर्पित आयोजन समिति ने इसे केवल कथा न मानते हुए समाज में रामराज्य की चेतना जागृत करने का अभियान बताया।
आयोजन के अंतिम क्षणों में श्रद्धालुओं ने राम दरबार की भव्य आरती में भाग लिया और अनेक लोगों ने आगामी शिविरों, ध्यान साधना सत्रों और सेवा परियोजनाओं में भाग लेने का संकल्प भी लिया। दिव्य ज्योति जागृति सेवा संस्थान द्वारा निकट भविष्य में वेदांत शिविर, ध्यान प्रशिक्षण और युवा चरित्र निर्माण अभियान की भी घोषणा की गई है। चित्रकूट की पुण्य भूमि ने एक बार फिर प्रमाणित किया कि यह केवल राम की स्मृति स्थली नहीं, बल्कि जीवंत चेतना का धाम है। सात दिनों की श्रीराम कथा ने केवल कथा कही नहीं, बल्कि एक आह्वान किया – धर्म के पुनर्जागरण का, सेवा के व्रत का और रामराज्य की स्थापना का।