बुंदेलखंड की पाठा धरती से निकला एक नाम इन दिनों गांव-गांव में चर्चा का विषय बना हुआ है गणेश मिश्र। कभी टेढ़ी पुरवा की गलियों में नंगे पांव चलने वाला यह युवक आज सामाजिक चेतना, विचारधारा और ओजस्वी नेतृत्व का प्रतीक बन चुका है। गणेश मिश्र न सिर्फ समाजसेवा में सक्रिय हैं, बल्कि सामाजिक चिंतन, राजनीतिक समझ और जनसंपर्क की गहरी पकड़ रखने वाले व्यक्तित्व के रूप में जाने जाते हैं। वे सहज हैं, सरल हैं, और सबसे बड़ी बात सबके अपने हैं। हनुवां गांव में जन्मे गणेश मिश्र के जीवन में संघ विचार परिवार और राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख का गहरा प्रभाव रहा है। सरस्वती शिशु मंदिर से शिक्षा की शुरुआत करने वाले मिश्र ने आगे चलकर दीनदयाल समाज की असल सेवा, मंचों पर भाषण से नहीं, मैदान में पसीना बहाकर होती है।ष् शायद यही कारण है कि वे कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों के बीच दवा और भोजन लेकर खुद पहुंचे, मां मंदाकिनी के पुनर्जीवन को लेकर सत्याग्रह में बैठे, और ग्रामीण क्षेत्रों में 100 से अधिक गांवों में शिक्षा का दीपक जलाने की मुहिम में सक्रिय भागीदारी निभाई। गणेश मिश्र राजनीति को सिर्फ पद की दौड़ नहीं, जननीति और लोकसेवा का माध्यम मानते हैं। वे लगातार किसानों, युवाओं, महिलाओं और समाज के कमजोर तबकों से संवाद में रहते हैं। वे गांवों में घूमते हैं, खेतों में किसानों के साथ बैठते हैं, युवा छात्राओं के साथ पढ़ाई की बात करते हैं और जरूरतमंदों के साथ खड़े दिखाई देते हैं।
चाहे आदिवासी क्षेत्रों में कृषि प्रशिक्षण देना हो या ग्रामीण प्रतिभाओं को पुरस्कार दिलाना कृ गणेश मिश्र हर मोर्चे पर सक्रिय हैं। जहां कहीं मंच मिलता है, गणेश मिश्र वहां सिर्फ बोलते नहीं सुनने वालों के भीतर ऊर्जा का संचार कर देते हैं। उनकी वाणी में ओज है, तर्क है और सटीक सामाजिक दृष्टि है। वे युवा हैं, लेकिन अनुभव और सोच के मामले में कई वरिष्ठों को पीछे छोड़ते हैं। उनका भाषण केवल नारों से नहीं, नीतियों और वैचारिक स्पष्टता से भरा होता है। चित्रकूट, बांदा और आसपास के क्षेत्रों में जब भी सामाजिक आयोजन होता है, गणेश मिश्र उसमें एक प्रेरक वक्ता और आयोजक के रूप में आमंत्रित रहते हैं। बच्चों के लिए वे शिक्षक हैं, किसानों के लिए साथी, युवाओं के लिए प्रेरणा और बुजुर्गों के लिए सम्मान का पात्र। लोग कहते हैं कि “गणेश भइया एक कॉल पर पहुंच जाते हैं” और यही उनकी सबसे बड़ी पूंजी है।
गांव से निकला विचारों का योद्धा, जनभावनाओं का सच्चा प्रतिनिधि गांव की सोच से निकला, राष्ट्र के निर्माण में लगा एक सच्चा सिपाही , यही हैं गणेश मिश्र
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