शुक्रवार, जुलाई 11, 2025
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हिंदुत्व के सच्चे सिपाही को भाजपा ने दिया था इनाम, चुनाव से ऐन पहले हटा दिया था पद से

भाजपा से बेआबरू कर निकाले गए श्याम गुप्ता की चुप्पी टूटी – हिंदुत्व के नाम पर सब सहा, बोले मैंने अपराध नहीं,धर्म के लिए काम किया था’

चित्रकूट की राजनीति में हिंदुत्व का अगर कोई ठोस ज़मीनी चेहरा बीते एक दशक में उभरा था, तो वह थे श्याम गुप्ता। रामनवमी जैसे विवादित आयोजनों की अगुवाई करने वाले, रामलीला भवन को अवैध कब्ज़े से बचाने की लड़ाई लड़ने वाले, नगर के अवैध कब्रिस्तानों पर खुलकर सवाल खड़े करने वाले इस शख्स को चुनाव से महज़ दो दिन पहले भाजपा ने नगर अध्यक्ष पद से हटा दिया। न कोई कारण बताया गया, न ही कोई सम्मानजनक विदाई दी गई। एक फोन तक नहीं आया। और अब, पहली बार उन्होंने अपने भीतर के दर्द को सार्वजनिक रूप से व्यक्त किया है। पत्रकार चंद्र प्रकाश द्विवेदी उर्फ बड़का पंडितश् से बातचीत में श्याम गुप्ता ने वह सब कुछ कहा, जिसे अब तक वे चुपचाप अपने सीने में दबाए हुए थे।
“मैंने जो किया, उसे अगर पार्टी अपराध मानती है तो मैं अपराधी हूं। मैंने रामलीला के लिए लड़ाई लड़ी, रामनवमी पर डंडे खाए, कब्रिस्तान पर सवाल उठाया। लेकिन अब लगता है कि हिंदुत्व की लड़ाई लड़ना अपराध बन चुका है,” श्याम गुप्ता कहते हैं। वह 2012 से 2017 तक सभासद रहे और 2017 के बाद भाजपा के नगर अध्यक्ष बने। उन्होंने कभी अपने पद की ताकत को दिखावे में नहीं बदला, न ही सोशल मीडिया प्रचार में लिप्त रहे। बल्कि जो किया, जमीन पर किया। बिना तस्वीरें खिंचवाए, बिना रील बनवाए।
श्याम गुप्ता भाजपा के ज़मीनी संगठन, खासकर हिंदू जागरण मंच से जुड़े रहे। उनका कहना है कि वे हमेशा उस विचारधारा से जुड़े रहे जिसमें हिंदू समाज की सुरक्षा, पहचान और गरिमा के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा मिलती थी। उन्होंने बताया कि रामनवमी के आयोजन की बात हो, जहां प्रशासन भी कांपता था, या फिर रामलीला भवन को लेकर उठते सवाल हों कृ ये सारे मोर्चे उन्होंने अकेले संभाले। ष्लोग मंच पर फोटो खिंचवाते रहे, मैं मंच के नीचे डंडे खाता रहा। अब वही मंच पर बैठे लोग मुझे पद से हटा रहे हैं,” वे तंज कसते हैं।
पार्टी से हटाए जाने की टाइमिंग पर भी उन्होंने गंभीर सवाल खड़े किए। चुनाव से ठीक दो दिन पहले मुझे हटा दिया गया। क्यों? ताकि मैं सवाल न कर सकूं? ताकि जो चल रहा है, उसमें मैं कोई दखल न दे सकूं? वे कहते हैं कि यह सब संयोग नहीं, पूरी तरह से सोच-समझ कर की गई ‘राजनीतिक साफ-सफाई’ है। उन्होंने कहा कि “अब भाजपा में वो चेहरे चाहिए जो स्क्रीन पर चमकते हों, जो हर दिन फेसबुक पर जय श्रीराम के साथ पोस्ट डालते हों, चाहे राम से उनका कोई लेना-देना हो या न हो। मैं वह चेहरा नहीं बन सका, इसीलिए बेकार हो गया।”
बातचीत के दौरान जब उनसे पूछा गया कि पार्टी ने उन्हें कोई कारण बताया? तो उन्होंने साफ कहा, “न कोई कारण बताया गया, न पूछा गया कि आप चुनाव में क्या सोचते हैं। सीधे हटाने का आदेश आया। मैं हैरान भी नहीं हूं क्योंकि मुझे समझ आ गया था कि अब पार्टी में ज़मीन से जुड़े लोगों की जरूरत नहीं रही।”
वह कहते हैं कि उन्हें अब यह भी नहीं लगता कि भाजपा वही पार्टी है जिसमें वे कभी शामिल हुए थे। “अब ये कॉर्पाेरेट पार्टी हो गई है। चेहरा चाहिए, फीलिंग नहीं। धर्म की लड़ाई अब सिर्फ भाषणों में रह गई है। मंच के पीछे काम करने वाले अब बोझ माने जाते हैं।ष् उन्होंने व्यंग्य में कहा, ष्अब हिंदुत्व फेसबुक पर ज्यादा जीवित है, सड़क पर नहीं।”
एक सवाल के जवाब में जब बड़का पंडित ने पूछा कि क्या वे अब किसी अन्य राजनीतिक दल में जाने की सोच रहे हैं, तो उन्होंने स्पष्ट कहा, “मेरा मकसद राजनीति करना नहीं था। मैं समाज के लिए आया था। अगर भाजपा अब समाज के मुद्दों से हट रही है, तो मेरे लिए वहां बने रहना भी कोई धर्म नहीं। अभी मैं किसी अन्य दल की बात नहीं कर रहा, लेकिन यह ज़रूर कहूंगा कि अगर विचारधारा से पार्टी भटकेगी, तो फिर विचारधारा वाले लोग अपना रास्ता खुद तय करेंगे।”
वे मानते हैं कि पार्टी में अब आंतरिक लोकतंत्र बचा नहीं है। “निगर पालिका चुनाव से पहले जितने लोगों ने नाम वापसी कराई या विरोध दर्ज किया, सबकी आवाज़ें दबा दी गईं। मैं भी उनमें से एक हो गया। फर्क सिर्फ इतना है कि मैंने नाम वापस नहीं लिया, मुझसे पद ही वापस ले लिया गया।”
रामलीला भवन के मुद्दे पर उन्होंने एक दिलचस्प बात बताई कृ “जब वहां कब्ज़ा किया जा रहा था, तो मैं अकेला खड़ा था। बाद में फोटो खिंचवाने वाले बहुत लोग आ गए। अब वही लोग संगठन में पद पा रहे हैं।” कब्रिस्तान के मुद्दे पर भी उन्होंने बताया कि उनके खिलाफ कई बार झूठे मुकदमे दर्ज हुए, लेकिन कभी पीछे नहीं हटे। “मेरे घरवालों ने कहा कि क्यों झमेले में पड़ते हो, लेकिन मैंने कहा कि अगर धर्म और समाज के लिए नहीं लड़ूंगा, तो फिर इस पद का क्या मतलब?”
उन्होंने यह भी कहा कि अब संगठन में सवाल पूछना ही अपराध हो गया है। अगर आप कह दें कि अमुक व्यक्ति ठीक नहीं, या यह निर्णय संगठन विरोधी है, तो आप ग़लत हो जाते हैं। अब निष्ठा का मतलब है जी सर। जो जी सर बोलेगा, वह पद पाएगा, चाहे उसने कोई काम किया हो या न किया हो।”
सबसे मार्मिक बात तब सामने आई जब उन्होंने कहा कि उनके बच्चों को स्कूल में ताना दिया गया कि “तुम्हारे पापा को पार्टी ने निकाल दिया।” वे कहते हैं, “मेरे लिए पद से जाना उतना कष्टदायक नहीं था, जितना यह कि समाज में लोगों को लगे कि मैंने कोई गलती की है, जबकि मैंने तो सिर्फ सेवा की।”
बातचीत के अंत में उन्होंने कहा, “मैं अब भी वही काम करूंगा जो पहले करता था। किसी पद की ज़रूरत नहीं। लोगों की ज़रूरत है, समाज की ज़रूरत है।” वे कहते हैं, “धर्म के लिए खड़ा होना अगर राजनीति के खिलाफ हो गया है, तो मैं राजनीति के खिलाफ हूं।”
इस पूरी बातचीत में एक गहरी कसक थी, एक ऐसा आक्रोश जो शब्दों में नहीं, आंखों में था। श्याम गुप्ता जैसे कार्यकर्ता अब भाजपा के लिए अप्रासंगिक हो गए हैं। न वे सेल्फी लेते हैं, न पोस्ट डालते हैं, न लाइव आते हैं वे सिर्फ काम करते हैं। और आज के समय में यही सबसे बड़ा दोष बन चुका है।

C P Dwivedi
C P Dwivedihttps://sarasbhavna.com
लेखक परिचय : चन्द्र प्रकाश द्विवेदी, चित्रकूट निवासी एक सक्रिय पत्रकार, लेखक, शिक्षाविद् और सामाजिक विचारक हैं, जो पिछले दो दशकों से हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र ‘सरस भावना’ के संपादक के रूप में जनपक्षीय पत्रकारिता कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार संस्थानों से की और अपने लेखन तथा संपादन कौशल से बुंदेलखंड की पत्रकारिता को नई दिशा दी। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर (M.A.), कंप्यूटर साइंस में मास्टर डिग्री (M.Sc. CS), सामाजिक कार्य में स्नातकोत्तर (MSW), पत्रकारिता एवं जनसंचार में डिग्री, और क़ानूनी ज्ञान में स्नातक (L.L.B.) की शिक्षा प्राप्त की है। वे एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं — एक संवेदनशील पत्रकार, प्रतिबद्ध समाजसेवी, करियर काउंसलर, राजनीतिक विश्लेषक, अधिवक्ता और व्यंग्यकार। वे शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि परिवर्तन और ग्रामीण विकास जैसे जनहित से जुड़े विषयों पर निरंतर काम कर रहे हैं। वर्तमान में वे बुंदेली प्रेस क्लब के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और सरकार से मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकारों में शुमार हैं। लेखन नाम बड़का पंडित‘’ के नाम से वे राजनीतिक पाखंड, जातिवाद, दिखावटी विकास, मीडिया के पतन और सामाजिक विडंबनाओं पर तीखे, मगर प्रभावशाली व्यंग्य लिखते हैं, जो समाज को सोचने और बदलाव के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी न सिर्फ व्यंग्य का माध्यम है, बल्कि बुंदेलखंड की पीड़ा, चेतना और संघर्ष की आवाज़ भी हैऔर शिक्षा, स्वास्थ्य व ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में सक्रिय रूप से कार्यरत हैं।
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