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पर्यावरण दिवस या पर्यावरण धोखा?” जहाँ हर साल लाखों पेड़ लगते हैं… वहाँ छांव क्यों नहीं मिलती?

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र्यावरण दिवस या पर्यावरण धोखा?”

हाँ हर साल लाखों पेड़ लगते हैं… वहाँ छांव क्यों नहीं मिलती

बड़का पंडित की बकैती — सच्चाई, व्यंग्य और जनता की आवाज़।

पाँच जून फिर आ गया, पर्यावरण दिवस मनाएंगे
वन विभाग, प्रशासन बोले — पेड़ लगाएंगे, दिखाएंगे.

पर पेड़ कहाँ लगते हैं? बस सड़कों के किनारे,
जहाँ जल नहीं, जहाँ छाँव नहीं, बस फोटो के सहारे।

चित्रकूट के जंगल कट गए, जला कर खतम किए,
राहों पे छाया गई छीन, सूरज ने आग लगाई दिए,

पेड़ जो थे कभी घने, अब सूखे खामोश खड़े,
जहाँ थे कभी चहकते पंछी, अब सन्नाटे ही रहते।

मंदाकिनी माँ अब रोती है, जल प्रदूषण से तड़पती,
नेता-समाजसेवी फोटो खिंचवाते, माइक पर बहाना गढ़ती।

“हरियाली बचाओ” के नारे, AC गाड़ी में दिए जाते हैं,
पौधे लगाकर दिखावा करते, बाद में जंगल काटे जाते हैं।

वन विभाग की रिपोर्ट में लिखा जाता है , “साल भर में लगाए पौधे,”

पिछली बार भी हुआ था बड़ा एक ड्रामा,
नेता-अफसर, पत्रकार — सबने रचा था स्यापा।
सबने गोद लिया एक-एक नन्हा पौधा,
फोटो खिंचवाई, खादी पहनी, हो गया पर्यावरण सौदा।

केक कटा, मिठाई खाई, भाषण झाड़ा गया,
“धरती मां” के नाम पर मंचों से नारा गया।
अगले ही दिन बारिश आई, मिट्टी बह गई सारा,
गोद लिए पौधों का निकला जनाजा दोपहर प्यारा।

पर असलियत में वो पौधे मर जाते, खो जाते है गंदे नाले में।

मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव भी बोले — “खूब पेड़ लगवाओ, पर्यावरण बचाओ, पर कैमरे में दिखाओ,”
जंगल की कटाई छुपाओ, जनता को भ्रम में रखाओ।

चित्रकूट के बाबाओं की नाटकबाजी भी कम नहीं,
दिखाते हैं ज़हर का दवा,
पर्यावरण का नाम लेकर, कर देते जंगलों का बर्बर बर्बरता।

करोडो की लूट चलती है, पर्यावरण के नाम पर भारी,
पेड़ की कटाई से छुपाए, अपनी जेबें भरते प्यारे।

फर्जी नेता, फर्जी समाजसेवी का खेल,
पर्यावरण के नाम पर हो रही वन विभाग की सबसे बड़ी लूट के मेल।

फोकसबाज़ी का मेला ये, हर साल एक बार सजता है,
पर्यावरण का नाम लेकर, सबका वोट बैंक बनता है।

“पेड़ जो दिखते हैं बस फोटो में,
असली हरियाली नहीं छुपती छाया में।
जब तक पेड़ नहीं सोच में लगेंगे,
धरती हरी नहीं, झूठे दावे झेलेंगे।”ब

बड़का पंडित कहते हैं —“

जब तक प्रकृति को वोट नहीं देंगे, तब तक ये धरती माँ रोती रहेगी l 

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C P Dwivedi
लेखक परिचय : चन्द्र प्रकाश द्विवेदी, चित्रकूट निवासी एक सक्रिय पत्रकार, लेखक, शिक्षाविद् और सामाजिक विचारक हैं, जो पिछले दो दशकों से हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र ‘सरस भावना’ के संपादक के रूप में जनपक्षीय पत्रकारिता कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार संस्थानों से की और अपने लेखन तथा संपादन कौशल से बुंदेलखंड की पत्रकारिता को नई दिशा दी। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर (M.A.), कंप्यूटर साइंस में मास्टर डिग्री (M.Sc. CS), सामाजिक कार्य में स्नातकोत्तर (MSW), पत्रकारिता एवं जनसंचार में डिग्री, और क़ानूनी ज्ञान में स्नातक (L.L.B.) की शिक्षा प्राप्त की है। वे एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं — एक संवेदनशील पत्रकार, प्रतिबद्ध समाजसेवी, करियर काउंसलर, राजनीतिक विश्लेषक, अधिवक्ता और व्यंग्यकार। वे शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि परिवर्तन और ग्रामीण विकास जैसे जनहित से जुड़े विषयों पर निरंतर काम कर रहे हैं। वर्तमान में वे बुंदेली प्रेस क्लब के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और सरकार से मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकारों में शुमार हैं। लेखन नाम बड़का पंडित‘’ के नाम से वे राजनीतिक पाखंड, जातिवाद, दिखावटी विकास, मीडिया के पतन और सामाजिक विडंबनाओं पर तीखे, मगर प्रभावशाली व्यंग्य लिखते हैं, जो समाज को सोचने और बदलाव के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी न सिर्फ व्यंग्य का माध्यम है, बल्कि बुंदेलखंड की पीड़ा, चेतना और संघर्ष की आवाज़ भी हैऔर शिक्षा, स्वास्थ्य व ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में सक्रिय रूप से कार्यरत हैं।

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