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क्यों विवादों में बनाई जा रही तुलसी नगरी राजापुर को ? विवादों में उलझें तुलसीदास।

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अपनें अस्तित्व के लिये लम्बें अर्शे तक जिस तरह राम नें अयोध्या में लडाई लडी उसी तरह अब राम के भक्त तुलसीदास भी राजापुर में अपनें अस्तित्व के लिये जुझते नजर आ रहे है । भले ही साहित्यज्ञों, राजनीतिज्ञाों और बिद्वानों की सभा नें सर्वसम्मति से तुलसी की जन्मभमि को स्वीकार ही क्यों न किया हो ।

रामचरितमानस के रचयिता महाकवि तुलसीदास जी चित्रकूट के राजापुर के निवासी थे इसी मरुधरा में पंडित आत्माराम दुबे एवं माता हुलसी के घर तुलसीदास का जन्म हुआ था यद्यपि महाकवि तुलसीदास के जन्म स्थान के बारे में स्पष्ट प्रमाण तो नहीं है लेकिन हिंदी के अधिकांश विद्वान साहित्यकारों ने राजापुर को ही तुलसी की जन्मभूमि होने की मान्यता दी है नए संदर्भों में तुलसी इंटर कॉलेज राजापुर चित्रकूट के पूर्व प्रवक्ता रहे लेखक एवं साहित्यकार राम गणेश पाण्डेय साहित्यरत्न ने अपने शोध ग्रंथ ‘‘तुलसी जन्मभूमि शोध समीक्षा’’ में अभिलेखीय प्रमाणों के आलोक में राजापुर को ही मान्यता देते हुए सिद्ध किया है जो तर्कसंगत हैं ।


ब्रिटिश शासन काल में फोर्ट विलियम कॉलेज कोलकाता में कार्यरत मुस्लिम साहित्यकार अदालत खां ने रामचरितमानस (जो उन दिनों इसी कालेज की पाठ्यपुस्तक के रुप में सम्मिलित था विदेशी छात्रों की कठिनाई को महसूस करते हुए) मानस के अयोध्याकाण्ड को अंग्रेजी भाषा में रूपांतरित करने का निर्णय लिया जो 1871 में पूरा हुआ 15 जुलाई 1871 को अदालत खां ने इस ग्रंथ की प्रस्तावना लिखी प्रस्तावना के अंत में अनुवादक अदालत खां ने तुलसीदास जी की जीवनी के संबंध में भी कुछ शब्द कहे उन्होंने गोस्वामी तुलसी का जन्म स्थान इलाहाबाद (वर्तमान प्रयागराज ) से 60 मील दूर स्थित चित्रकूट के समीप हाजपुर (वर्तमान राजापुर) ग्राम बताया है जबकि कुछ साहित्यकारों का मानना है कि प्रेस की असावधानी के कारण राजापुर ही हाजपुर मुद्रित हुआ है ।
चित्रकूट दर्शन में आचार्य बाबूलाल गर्ग ने लिखा है कि यमुना की तेज धार से राजापुर बस्ती एवं तुलसी मंदिर की रक्षा के लिए सन 1917 में तुलसी स्मारक सभा की स्थापना की गई जिस के प्रयास से उत्तर प्रदेशीय प्रशासन द्वारा घाट का नव निर्माण कराकर राजापुर को यमुना की तेज धार के कटाव से बचा लिया
यमुना के किनारे पर तुलसी जी का मंदिर है यहां की मान्यता है कि जहां तुलसीदास जी का घर था उसी जगह पर यह मंदिर स्थापित है यह कच्ची कुटी 1905 तक ज्यों की त्यों बनी रही सन 1906 में मि0 नॉक्स एसडीओ कर्वी के साथ इलाहाबाद के कमिश्नर मि0 ब्रोनिंग तुलसीदास जी का स्मारक देखने गए जीर्ण शीर्ण हालत देखकर उन्होंने उ प्र सरकार से लिखा पढ़ी कर तुलसी की कुटी की मरम्मत के लिए 700 रुपए का अनुदान दिलाया ।
1908 में राजापुर के सब पोस्टमास्टर बाबू रेवतीलाल ने पक्का मंदिर बनवाने के लिए चन्दा जुटाया जिसमें दक्षिण अफ्रीका तक के भारतीयों समेत अनेक ईसाई मुसलमान और अंग्रेजों तक ने यथाशक्ति चंदा दिया जिसके फलस्वरूप तुलसी जन्म कुटीर का भव्य मंदिर निर्मित हो सका 1945 में हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थाई समिति ने राजापुर में तुलसी स्मारक के संबंध में एक प्रस्ताव स्वीकृत किया । बलदेव प्रसाद गुप्त क अथक प्रयास से हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति श्री राहुल सांकृत्यायन ने हिंदी के कई लेखकों पत्रकारों एवं तुलसी प्रेमियों के साथ राजापुर की यात्राएं की
जनमानस को यह सदा से रुचिकर रहा है कि हमारे महापुरुषों ने कहाँ जन्म लिया उनके माता पिता कौन थे उन्होंने क्या कार्य किये और कहाँ कहाँ गए तथा किन स्थलों में निवास किया, इसकी जानकारी इतिहास में उपलब्ध होनी चाहिये ।
15 अप्रैल 1955 को तुलसी स्मारक समिति का गठन कर समिति के अध्यक्ष पंडित गोविंद बल्लभ पंत उपाध्यक्ष डॉ संपूर्णानंद मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश मंत्री चतुर्भुज शर्मा उप मंत्री कृष्ण दत्त वैद्य जी ने राजापुर में तुलसी स्मारक बनवाने का निर्णय लिया 1957 को इसकी आधारशिला राजापुर में रखी गई । स्वतंत्र भारत में सन 1953 से 1960 के मध्य काल में तुलसी स्मारक समिति का गठन किया गया । इस समिति के अध्यक्ष पंडित गोविंद बल्लभ पंत रहे इनके प्रयास से तुलसी स्मारक भवन का निर्माण कराया गया जिसमें उस समय 21 लाख रुपए खर्च हुए ।


तुलसी स्मारक के निर्माण की योजना के संदर्भ में एक तथ्य यह भी प्रकाश में आया है कि तुलसी जैसे महाकवि के गौरव के योग्य कोई स्मारक देश में नहीं है यह अभाव खटकने वाला है इस अभाव को दूर करने की आवश्यकता से उत्तर प्रदेश सरकार ने देश के साहित्यकारों राजनेताओं पत्रकारों की सभा बुलवाई जो दिल्ली में चली इस प्रेरणा के बाद राजापुर में तुलसी स्मारक बनाने की एक योजना बनी जो अनेक विध्नों के बावजूद यह योजना साकार रूप ले सकी योजना ऐसी थी कि इस स्मारक में तुलसी साहित्य तथा तुलसी विषयक सामग्री के संग्रहालय के अतिरिक्त अनुसंधान तथा तुलसी साहित्य के अनुशीलन की भी व्यवस्था रहेगी ।
तुलसी जन्म स्थान के संबंध में राजापुर चित्रकूट के प्रति द्वन्दी के रूप में सोरों का नाम भी खुलकर सामने आया इस विवाद का सूत्रपात 1908 से उभर कर सामने आया है किन्तु 1953- 54 तक यह विवाद तत्कालीन साहित्यकारों पुरातत्व वेत्ताओं इतिहासज्ञों एवं राजनीतिज्ञों द्वारा तथ्यात्मक आधार पर निर्णीत घोषित कर दिया गया था और राजापुर चित्रकूट को तुलसी दास जी की जन्मभूमि सर्वस्वीकृत की गई ।
31 मई 1960 को भारतीय हिंदी परिषद के तत्वावधान में दिल्ली में देश भर के विद्वानों ने गोष्ठी आयोजित की और सर्वसम्मति से राजापुर चित्रकूट को तुलसी जन्मभूमि घोषित करते हुए राजापुर में निर्मित तुलसी स्मारक का उद्घाटन समारोह करने के लिए भारत सरकार से अनुरोध किया
तुलसी स्मारक समिति द्वारा गोस्वामी तुलसीदास जी की जीवंतता को अच्छूण रखने के लिए तुलसी तीर्थ राजापुर में तुलसी स्मारक का निर्माण कराया इस पुण्य पुनीत कार्य में राजापुर के कुछ नगरवासियों ने तुलसी की यादों को संजोए रखने के लिए अपनी भूमिधरी जमीनें तुलसी स्मारक बनाने के लिए कृष्णदत्त मिश्र उपमंत्री को दान तक कर दी
तुलसी स्मारक का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री भारत सरकार प0जवाहरलाल नेहरु को करना था परन्तु अपरिहार्य कारणों से न आने पर सी वी गुप्ता मुख्यमंत्री उप्र द्वारा इस स्मारक का उद्घाटन भव्य समारोह के आयोजन में किया गया


उप्र सरकार के तत्कालीन गवर्नर मोतीलाल वोरा ने तुलसी तीर्थ राजापुर में तुलसी शोध संस्थान निर्मित कराने व तुलसी व उनकी साहित्यिक कृतियों पर शोध कार्य हेतु 25 लाख रुपए की धनराशि अवमुक्त की थी लेकिन यह धनराशि तुलसी नगरी राजापुर तक नहीं आ सकी
15अप्रैल 1955 की मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गठित कमेटी तुलसी स्मारक समिति गोस्वामी तुलसीदास जी पावन जन्मभूमि तुलसी तीर्थ राजापुर में 1975 तक वृहद फलक पर क्रियाशील रही
कालान्तर में 1976 के अंत में चतुर्भुज शर्मा मंत्री/सेक्रेटरी तुलसी स्मारक समिति के असमय अवसान होने पर समिति के संविधान के अनुरूप कृष्ण दत्त मिश्र राजापुर को तुलसी स्मारक समिति का मंत्री बनाया गया लेकिन उन्होंने 1977 में अपना चार्ज अपने पुत्र डॉ सन्तोष कुमार मिश्र को देते हुए तुलसी स्मारक समिति (लखनऊ)का आजीवन सदस्य बनाया
चूंकि उक्त संस्था निष्क्रिय हो चुकी थी तो निष्क्रिय होने के कारण संस्था के हित को देखते हुए सन 2000 में तुलसी स्मारक समिति के मंत्री डॉ सन्तोष कुमार मिश्र ने स्मारक समिति के पुराने संविधान को रद कर नया संविधान बनाकर चित्रकूट के तत्कालीन जिलाधिकारी जगन्नाथ सिंह से व्यक्तिगत अनुरोध कर संस्था का हित देखते हुए जिलाधिकारी चित्रकूट को पदेन अध्यक्ष पद पर नियुक्त कर उपाध्यक्ष डॉ सन्तोष कुमार मिश्र नियुक्त हो गए
तब से तुलसी स्मारक का कार्य इसी कमेटी के द्वारा निर्धारित चला आ रहा है जो 2015 तक निर्विघ्न रूप से तुलसी जयंती जन्मोत्सव महोत्सव कार्यक्रम का संचालन निष्पादित करते रह.  चतुर्भुज शर्मा पूर्व मंत्री तुलसी स्मारक समिति के निधन के पश्चात उनके बेटे मानिक चन्द्र शर्मा एवं बहू श्रीमती इंदू शर्मा ने उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की जिस पर न्यायालय ने प्रथम द्रष्टया एक आदेश पारित किया कि किसी भी प्राइवेट संस्थाओं में (आई एस)जिलाधिकारी पदेन अध्यक्ष नहीं हो सकता है न्यायालय ने मुख्य सचिव उप्र को निर्देश जारी किए कि इस प्रकरण की जांच करें कि आई एस अधिकारी कैसे किसी प्राइवेट संस्था के अध्यक्ष बने यदि नियमतः गलत हों तो इनके खिलाफ कार्यवाही सुनिश्चित की जाए
लेकिन मुख्य सचिव ने आज तक इस संदर्भ में कोई आदेश नहीं पारित किया
ऐसी स्थिति में माननीय उच्च न्यायालय के आदेश की वजह से न तो जिलाधिकारी चित्रकूट कोई कार्य कर पा रहे हैं और न ही तुलसी स्मारक समिति का किसी को चार्ज दे पा रहे है .  सभी प्रवचन कर्ता महाकवि तुलसी की अभूतपूर्व रचना राम चरित मानस की छाया में ही प्रवचन कर अपनी पहचान के साथ साथ जीविका चला रहे हैं ऐसे लोगों को तुलसी के जन्मोत्सव को मनाने के लिए तुलसी तीर्थ राजापुर में आना चाहिए.  आज तुलसी के बराबर विश्व में न तो कोई दूसरा सन्त है और न ही कोई साहित्यकार और कवि है अंग्रेजी के कवि शेक्सपियर से ज्यादा स्थान राजापुर का होना चाहिए
तुलसी ने राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बनाया है यह सारा श्रेय तुलसी तीर्थ राजापुर का है जो गोस्वामी जी ने राम को मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनाते हुए ऐसा ही चरित्र निर्माण बनाने की सीख संसार को दी है मानस सा सजीव चित्रण किसी दूसरे कवि ने मर्यादा का उकेरा हो ऐसा लगता नहीं है


वर्तमान में तीन कमेटी हैं राजापुर में सक्रिय भूमिका में
1- तुलसी स्मारक समिति लखनऊ गठन 15 अप्रैल 1955 उपलब्धि तुलसी की जीवंतता को बरकरार रखने व उनकी यादों को संजोए रख तुलसी स्मारक का निर्माण व तत्कालीन मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश द्वारा लोकार्पण कराए जाने का गौरव इस समिति को जाता है ।
2 – तुलसी स्मारक समिति (प्रशासनिक) अध्यक्ष- जिला अधिकारी चित्रकूट सचिव – उप जिला अधिकारी मऊ।
3- तुलसी स्मारक समिति – श्रीमती इंदु शर्मा , रामभद्राचार्य जी महाराज एवं एक दर्जन फर्जी सदस्य
उभरते सवाल
जिनके जवाब की है तुलसी अनुयायियों को तलाश
15 अप्रैल 1955 को गठित स्मारक समिति जब क्रियाशील थी तो दूसरी समिति बनाने की आवश्यकता क्यों?
तुलसी पर अब तक इनकी क्या उपलब्धि हासिल की गई है ।
इन कमेटियों के होने से भी राजापुर और तुलसी उस मुकाम हासिल करने एवं पहचान के मोहताज क्यों

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