Homeबड़का पंडित की बकैतीजो बोले, वही दोषी!" - " चित्रकूट के घाट नहीं, घोटाले हैं!"

जो बोले, वही दोषी!” – ” चित्रकूट के घाट नहीं, घोटाले हैं!”

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चित्रकूट की ‘रामराज्य’ व्यवस्था पर बड़का पंडित का व्यंग्य)

चित्रकूट में भ्रष्टाचार अब खत्म है भाई,
जो कहे ‘भ्रष्टाचार है’—वो सबसे बड़ा हरजाई!
जो सिस्टम पर सवाल उठाए,
उसके पीछे दलालों की सेना लग जाए।

चांदी घाट अब चांदी नहीं उगलता,
बल्कि जेसीबी का पंजा वहाँ रोज़ गरजता।
धौररहा घाट पर न नाव बची, न आस्था,
हर ओर रेत की ट्रॉली और दलाली की भाषा।

ओवर लोडिंग का आलम यह,
कि सड़कें काँपती हैं, पर अफसर सोते हैं।
शायद हर चक्के में ‘नजराना’ फिट है,
जो आँखों को अंधा और व्यवस्था को गूंगा कर देता है।

अवैध खनन के सवाल पर सबका मुँह सिला है,
नेता बोले— ‘हमें तो कुछ नहीं दिखा है!’
अधिकारी बोले— ‘सब नियम से चलता है,’
और पत्रकार बोले— ‘हम तो बस प्रेसनोट पलटते हैं भाईसाहब!’

तीरमऊ घाट का पानी अब धूल से भर गया,
यमुना और मन्दाकनी माँ की ममता—रेत माफियाओं ने हर लिया।
चित्रकूट नेता बोले—“सब अच्छा है, रामराज है,”
अफसर बोले—“सब स्वच्छ, साफ सुथरा है”,
पत्रकार बोले—“नेता यशस्वी और लोकप्रिय हैं”,
और ‘भक्तजन’ बोले—“तू ही देशद्रोही और तू ही दलाल है!”

अब सवाल पूछना भी जुर्म है,
और सच्चाई दिखाना अपराध।
जो बोले—वो ‘फ्रॉड’, जो चुप—वो ‘श्रद्धालु’,
अब ईमानदारी भी एक ‘साजिश’ है आज।

समाजसेवी अब ‘सेवा’ में कम, ‘सेटिंग’ में ज्यादा दिखते हैं,
जहाँ कभी आवाज़ उठती थी, अब वहां व्हाट्सएप स्टोरी बिकते हैं।

हर महीने की मालगुज़ारी में बाँध दी गई जुबान,
रेत के बदले रोटियाँ सेंक रहा पूरा खानदान।कु

कुछ बोले तो जांच बैठ जाएगी,

फेसबुक अकाउंट से लेकर FIR तक खिंच जाएगी।
इसलिए सबने पहन लिया है “नपुंसक मौन का मुखौटा”,
और हर दलाल बन बैठा है “गंगा पुत्र” का छोटा!

बड़का पंडित का तंज –

अब सत्य नहीं बोलता कोई,

क्योंकि जो बोले वो ‘दलाल’ कहलाए,

और जो चुप रहे—उसके हिस्से महिना आए!”

चौकसी का नाम नहीं,
नेताओं का काम नहीं,
पत्रकारों की कलम में भी—अब किराये का दाम नहीं

(लेखक चन्द्र प्रकाश द्विवेदी, चित्रकूट से प्रकाशित अखबार सरस भावना का संपादक और मान्यता प्राप्त पत्रकार तथा बुंदेली प्रेस क्लब का अध्यक्ष हैl)

C P Dwivedi
C P Dwivedihttps://sarasbhavna.com
लेखक परिचय: चंद्रप्रकाश द्विवेदी , चित्रकूट निवासी एक सक्रिय पत्रकार, लेखक, शिक्षाविद् और सामाजिक विचारक हैं, जो पिछले दो दशकों से हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र ‘सरस भावना’ के संपादक के रूप में जनपक्षीय पत्रकारिता कर रहे हैं। उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार संस्थानों से की और अपने लेखन तथा संपादन कौशल से बुंदेलखंड की पत्रकारिता को नई दिशा दी। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर (M.A.), कंप्यूटर साइंस में मास्टर डिग्री (M.Sc. CS), सामाजिक कार्य में स्नातकोत्तर (MSW), पत्रकारिता एवं जनसंचार में डिग्री, और क़ानूनी ज्ञान में स्नातक (L.L.B.) की शिक्षा प्राप्त की है। वे एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं — एक संवेदनशील पत्रकार, प्रतिबद्ध समाजसेवी, करियर काउंसलर, राजनीतिक विश्लेषक, अधिवक्ता और व्यंग्यकार। वे शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि परिवर्तन और ग्रामीण विकास जैसे जनहित से जुड़े विषयों पर निरंतर काम कर रहे हैं। वर्तमान में वे बुंदेली प्रेस क्लब के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और सरकार से मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकारों में शुमार हैं। लेखन नाम बड़का पंडित‘’ के नाम से वे राजनीतिक पाखंड, जातिवाद, दिखावटी विकास, मीडिया के पतन और सामाजिक विडंबनाओं पर तीखे, मगर प्रभावशाली व्यंग्य लिखते हैं, जो समाज को सोचने और बदलाव के लिए प्रेरित करते हैं। उनकी लेखनी न सिर्फ व्यंग्य का माध्यम है, बल्कि बुंदेलखंड की पीड़ा, चेतना और संघर्ष की आवाज़ भी है।

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